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________________ बंकचूलचरियं ४९. मुनिगण बिना कारण पावस में चार महीने और शेष काल में सदा एक मास रहते हैं । ३४ ५०. साधुओं के लिए सदा एक स्थान में रहना अच्छा नहीं है । अत: जिनेश्वर देव ने साधुओं के लिए नवकल्पिक विहार कहा है । ५१-५२. जिस प्रकार एक स्थान में पड़ा हुआ स्वच्छ जल भी मलिन बन जाता है, उसी प्रकार एक स्थान में रहने पर पवित्र मुनि भी साधना से भ्रष्ट हो सकता है ऐसा जिनेश्वर देव ने कहा है 1 ५३. बंकचूल को स्थान संभला कर आचार्य ने प्रसन्नचित्त होकर शिष्यों के साथ वहां से प्रस्थान किया । ५४. उनसे प्रभावित हुआ बंकचूल भी अपनी सीमा - पर्यन्त आचार्य को छोड़ने के लिए आया । ५५. जब सीमा आई तब आचार्य को वंदन कर बंकचूल गद्गद् होकर कहने लगा ५६. हे करुणानिधि ! आप हमें पुनः दर्शन देना और फिर कभी इस स्थान को पवित्र करना । ५७. उसका निवेदन सुनकर आचार्य ने कहा – तुमने हमें पावस योग्य उचित स्थान दिया । ५८. बिना समुचित स्थान के निर्विघ्न साधना नहीं हो सकती अत: साधुओं के लिए स्थान का महत्व है । नहीं । की । ५९. जितना कार्य एकान्त स्थान में होता है उतना कोलाहलपूर्ण स्थान में ६०. तुम्हारे स्थान को पाकर हम सब मुनियों ने प्रसन्नचित्त से उत्तम साधना
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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