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________________ बंकचूलचरियं चतुर्थ सर्ग १. जो व्यक्ति पाप करके भी उसका पश्चात्ताप नहीं करता वह उसको कभी नहीं छोड़ सकता । क्योंकि पश्चात्ताप से ही पाप का निरोध होता है। २. पाप करके भी बंकचूल मन में पश्चात्ताप नहीं करता है अत: उसके पाप में बहुत वृद्धि हुई । राजा ने उसको शीघ्र ही नगर छोडने का आदेश दे दिया। ३. अपने पिता से यह आदेश पाकर भी उसके मन में दुःख नहीं हुआ। वह रात्रि में नगर छोड़कर जाने को उत्सुक हुआ। ४. पति को ही जीवन-साथी मानने वाली उसकी पत्नी भी उसके साथ जाती है । सुधीजनों ने उसी नारी को श्रेष्ठ कहा है जो दुःख में भी पति को नहीं छोड़ती। ५. उससे (बंकचूल से) स्नेह होने के कारण बहिन बंकचूला भी उसके साथ जाती है। उन दोनों (पत्नी और बहिन) के साथ बंकचूल बुरे कर्मों से प्रेरित होता हुआ चला जाता है। ६. चलता हुआ वह भीलों (आदिवासी) की बस्ती में आ गया। वहां के मनुष्य चोरी करते थे। वे सभी थके हुए थे अत: थोड़ी देर विश्राम करने के लिए उस बस्ती के बाहर ठहर गए। ७. वहां के मनुष्यों ने उनको देखा। उनके रूप को देखकर विस्मित होकर मुखिया ने बंकचूल को पूछा ८. तुम कौन हो? यहां क्यों आए हो? तुम्हारे साथ ये दो स्त्रियां कौन है ? उसके प्रश्न को सुनकर बंकचूल ने संशय दूर करते हुए कहा ९. मैं राजा का लड़का हूं । मेरा नाम बंकचूल है । ये दो औरतें और कोई नहीं हैं- एक मेरी पत्नी है और एक मेरी बहिन । . १०. मैं चोरी करने लगा अत: पिताजी ने मुझे देश से निकाल दिया। मनुष्य जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है।
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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