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________________ बंकचूलचरियं २४. राजा ने उससे पूछा-क्या तुम चोरी करते हो? पिता की यह बात सुनकर बंकचूल भयभीत हो गया। २५. पिताजी ने मेरी चोरी की गुप्त बात को कैसे जान लिया? यह सत्य है कि पाप कभी छिपते नहीं। २६. उसने झूठ बोलते हुए कहा- पिताजी ! मैं चोरी नहीं करता हूं। यह आश्चर्य है कि मनुष्य पाप करके भी उसे स्वीकार नहीं करते। २७. बंकचूल की बात सुनकर राजा मन में सोचने लगा-क्या कोई मनुष्य पाप करके कहता है कि मैने पाप किया है। २८. अत: इस कुकर्मी को मुझे शीघ्र ही दंड देना चाहिए । जो व्यक्ति बुरा कार्य करने वाले को दंड नहीं देता है वह उसके पाप कार्य को बढाता है। २९. चाहे पुत्र हो या और कोई, बुरा कार्य करने वाले को राजा दंड दें। जो राजा दूसरों को दंड देता है और पुत्र को नहीं वह सदा निंदा को प्राप्त करता है। ३०. इस प्रकार विचार कर राजा ने बंकचूल से कहा- नगर के सभ्य व्यक्तियों ने मुझसे निवेदन किया है कि तुम चोरी करते हो। ३१. तुम राजपुत्र होकर भी चोरी करते हो तब दूसरे मनुष्य क्यों नहीं करेंगे? क्योंकि प्रजा के ऊपर सदा शासकों का प्रभाव पड़ता है। ३२. अत: मैं तुम्हें यह दंड देता हूं कि तुम आज ही मेरे देश को छोड़कर अन्यत्र जहां इच्छा हो वहां चले जाओ। तुम मुझे अब बिल्कुल अच्छे नहीं लगते । ३३. राजा के मुख से यह दंड सुनकर सूर्य उसके न्याय के आगे झुक कर किरणों के साथ चला गया (अस्त हो गया)। ३४. एक दूसरे से दंड की यह बात सुनकर सभी मनुष्य मन में विस्मित हुए। वे राजा के न्याय की प्रशंसा करने लगे। तृतीय सर्ग समाप्त
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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