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________________ बंकचूलचरियं १४ १२. राजा उसके (पुष्पचूला के) घर आकर अपनी पुत्री को धैर्य बंधाता है और कहता है-पुत्रि ! अब शोक करने से क्या होगा ? जो लिखा था वह हो गया । १३. इस संसार में अपना क्या है ? फिर भी मूढ व्यक्ति दूसरे को अपना कहकर उसके विनाश होने पर दुःखी होते हैं । ममत्व ही सदा दुःख का हेतु है । १४. पुत्रि ! इस संसार में कोई भी वस्तु अपनी नहीं है । फिर उसके नष्ट होने पर दुःख क्यों ? अत: तुम शीघ्र ही दुःख को छोड़कर धर्म में लीन हो जाओ । १५. इस प्रकार पुत्री को प्रेरणा देकर और उसे लेकर वह अपने नगर आ गया । क्योंकि दुःख के समय में कन्या को माता-पिता का ही आश्रय होता है । १६. माता-पिता के आश्रय को पाकर वह अपने दुःख को हल्का करती है । लेकिन उसका मन धर्म में नहीं लगता। क्योंकि कर्मों से भारी व्यक्तियों के लिए धर्माचरण सरल नहीं है । १७. इधर पुष्पचूल कुसंगति को पाकर चोरी करने लगा। कुसंगति से मनुष्यों का संसार में क्या-क्या अहित नहीं होता ? १८. कई व्यक्ति धन के अभाव में चोरी करते हैं, कई दुर्व्यसनों में पड़कर और कई कुसंगति के कारण चोरी करते हैं । I १९. लेकिन चोरी जघन्य कार्य है ऐसा जिनेश्वर देवों ने कहा है । इससे निन्दा होती है और वैर बढ़ता है । अतः मनुष्यों को चोरी छोड़ देनी चाहिए। २०. वह पुष्पचूला भी अपने भाई के कार्य में अपना सहयोग देने लगी । गिरे हुए व्यक्ति को और अधिक गिराने वाले संसार में बहुत मनुष्य हैं । २१. अपने कार्यों में बहिन का सहयोग पाकर उसका मनोबल बढ गया । वह निर्भय होकर चोरी करने लगा और प्रजा को पीड़ित करने लगा । 1 २२. जब रक्षक ही भक्षक बन जाते हैं तब प्रजा की सदा कुदशा होती है ऐसे समय में यदि मनुष्य कुछ भी नहीं करते हैं, तो उनका निश्चित ही अहित होता 1 द्वितीय सर्ग समाप्त
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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