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________________ मियापुत्तचरियं १४० १२-१३. जब एक भी रोग शरीर में उत्पन्न होता है तब भी मनष्यों के प्रचर पीडा होती है । जब अनेक रोग शरीर में उत्पन्न होते है तब मनुष्यों की वेदना का क्या कहना? १४. वह एकादि राष्ट्रकूट सोलह रोगों से ग्रस्त हो वेदना का अनुभव करने लगा। वह आर्तध्यान करने लगा। १५-१६-१७. उसने अपने अनुचरों से इस प्रकार घोषणा कराई कि जो कोई. भी उसके रोगों में से एक को भी उपशान्त कर देगा उसे एकादि राष्ट्रकूट प्रचुर धन देगा। इस घोषणा को सुनकर उसकी चिकित्सा करने के लिए कुशल वैद्य आते हैं किंतु कोई भी तब उन रोगों में एक को भी उपशांत करने के लिए समर्थ नहीं हुआ। १८. जब प्रयत्न करने पर एक भी रोग शांत नहीं हुआ तब वह खिन्न हो गया। वह विमना उन्हें सहन करने लगा। १९. प्रचुर वेदना को पाकर भी एकादि राष्ट्रकूट भोगों में, राज्य में और अंत:पुर में पूर्ववत् आसक्त रहा। २०. वह २५० वर्ष का मनुष्याय भोग कर, मर कर प्रथम नरक में गया। २१. वहां की एक सागरोपम स्थिति को भोग कर वह हस्तिनापुर नगर में उत्पन्न हुआ। २२. हे गौतम ! तुमने जिस मृगापुत्र को देखा है वह एकादि राष्ट्रकूट का जीव है। २३. वह अभी पूर्वकृत कर्मों का फल भोग रहा है । जो जैसा कर्म करता है वह वैसा फल प्राप्त करता है।
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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