SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२१ मियापुत्तचरियं पाइयपच्चूसो कथा वस्तु मृगापुत्र मृगाग्राम के क्षत्रिय राजा विजय का पुत्र था। उसकी माता का नाम मृगादेवी था । जब वह गर्भ में आया तब मृगादेवी के उदर में भयंकर पीडा होने लगी तथा वह राजा को अप्रिय हो गई। राजा न उसके पास जाता और न उससे बात करता । एक दिन मृगादेवी के मन में विचार आया— जब से यह गर्भ मेरे उदर में आया है, तब से राजा न मेरे पास आता है और न मेरे से बात करता है । अतः इस गर्भ को नष्ट कर देना चाहिए। ऐसा चिंतन कर उसने उस गर्भ को नष्ट करने के लिए अनेक औषधियों का प्रयोग किया। किंतु वह गर्भ नष्ट नहीं हुआ । आखिर वह विमना हो उस गर्भ का वहन करने लगी । नव मास पूर्ण होने पर उसने जन्मांध और जन्मांधरूप वाले एक बालक को जन्म दिया। उसे देखकर रानी डर गई। उसने धामाता से कहा- इस बालक को अकूरड़ी पर फेंक दो । धायमाता उस बालक को लेकर राजा के पास आई और बोली- राजन् ! नव मास के बाद रानी ने इस बालक को जन्म दिया है। इसके रूप को देखकर उसने मुझे इसे अकूरड़ी पर फेंकना का आदेश दिया है । अब मैं तुम्हारी आज्ञा लेने आई हूँ । धायमाता के मुख से यह सुनकर राजा रानी मृगादेवी के समीप आया और बोला- 'रानी ! यह तुम्हारा प्रथम गर्भ है । अत: तुम इसका गुप्तरूप से पालन करो जिससे तुम्हारी भावी संतानें भी जीवित रहे ।' राजा का कथन स्वीकार कर रानी विमना हो उस बालक को तलगृह में रखकर उसका गुप्तरूप से पालन करने लगी । उस बालक के शरीर के अंदर और बाहर आठ-आठ नाड़ियां थीं। दो कर्णछिद्रों में, दो नयन छिद्रों में, दो नासिका छिद्रों में और दो हृदय की धमनियों में थीं । उस बालक के शरीर में गर्भ से ही भस्म नामक व्याधि थी । वह जो भी खाता वह शीघ्र ही पीप और रक्त परिणत हो जाता था। वह पीप और रुधिर नाडियों में बार-बार बहता था । भस्म व्याधि से पीडित वह उस पीप और रुधिर को खा जाता था ।
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy