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________________ पएसीचरियं ११० ११६-११७. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, शरीर रहित जीव, आकाशास्तिकाय, परमाणु पुद्गल, शब्द, गंध, वायु, भविष्यकाल में जो जिन होगा तथा यह दुःख का अंत करेगा- छद्मस्थ उन्हें नहीं जानता है। ११८. केशी स्वामी के युक्तिपूर्वक वचन को सुनकर राजा ने पुन: यह पूछा- क्या हाथी और कुंथु दोनों का जीव समान होता है ? ११९-१२०. तब केशी स्वामी ने कहा- हाँ ! राजा ने पुन: इस प्रकार पूछाक्या हाथी से कुंथु अल्पकर्मा, अल्पक्रियावान्, अल्पकांतिवान्, अल्पऋद्धिमान्, अल्प उच्छवास नि:श्वास वाला तथा अल्पभोजी है । केशी स्वामी ने कहा- हाँ। तब राजा ने पुन: पूछा १२१-१२२. क्या कुंथु से हाथी प्रचुर कर्मवाला, प्रचुर कांतिवाला, बहुत उच्छ्वास- निश्वास वाला, प्रचुर ऋद्धि वाला, प्रचुर भोजन करने वाला और महाक्रिया वाला है । राजा के इस प्रश्न को सुनकर श्रमण केशी ने कहा- हाँ । तब राजा ने उन्हें कहा १२३. दोनों में जब अंतर है तब दोनों का जीव कैसे समान है ? इस प्रकार राजा का प्रश्न सुनकर केशी स्वामी ने यह कहा १२४. यदि कोई व्यक्ति कूटगृह के मध्य में दीपक रखे तो वह संपूर्ण कूटगृह को प्रकाशित करता है किंतु बाहर प्रकाश नहीं करता। ___ १२५-१२६. यदि उसे (दीपक को) एक या अनेक वस्तु से ढक दे तो वह कूटगृह को प्रकाशित नहीं करता। उसी प्रकार हे राजन् ! कर्मोदय से छोटा या बड़ा जैसा शरीर बंधता है उसमें जीव के समस्त प्रदेश समाहित हो जाते हैं। १२७. अत: तुम यह विश्वास करो कि जीव शरीर से भिन्न है । केशी स्वामी के युक्तिपूर्वक वचन को सुनकर राजा ने कहा-- १२८. आप सब ठीक कहते हैं किंतु मैं अपने मत को कैसे छोड़ दूं ? यह मत मेरे अकेले का नहीं है किंतु कुल परंपरा से आया हुआ है।
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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