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________________ मियापुत्तचरियं - यह काव्य जैन आगम विवागसुयं' के आधार पर रचित है । इसके तीन सर्ग हैं । प्रत्येक सर्ग भिन्न-भिन्न छंदों में आबद्ध है । इसका निर्माण वि.सं.२०४० सरदार शहर में हुआ। . इन तीनों काव्यों का हिन्दी अनुवाद स्वयं मैंने ही किया है। प्रत्येक काव्य में समागत शब्दों का अर्थ तथा हेमचंद्राचार्य कृत प्राकृत व्याकरण के सूत्रों का प्रमाण भी पादटिप्पण में दे दिया गया है जिससे विद्यार्थियों का व्याकरण विषयक ज्ञान भी सुदृढ बने । कहीं-कहीं समागत शब्दों के प्रमाण के लिए महाकवि धनपाल विरचित पाइयलच्छीनाममाला का भी उद्धरण दिया गया है। प्राकृत व्याकरण का संकेत चिन्ह है - प्रा.व्या.। गणाधिपति पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी तथा आचार्य श्री महाप्रज्ञ के प्रति मैं किन शब्दों में आभार व्यक्त करूं,उनकी मंगल सन्निधि,प्रेरणा और मार्गदर्शन मुझे सतत गतिशील बनाये रखता है। इन काव्यों के निरीक्षण में मुनि श्री दुलहराजजी तथा डॉ.सत्यरंजन बनर्जी (प्रोफेसर, कलकत्ता विश्वविद्यालय) का मुझे मार्गदर्शन तथा सहयोग मिला,अत: मैं उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हूं । डॉ.सत्यरंजन बनर्जी ने मेरी दोनों पुस्तकों - पाइयपच्चूसो और पाइयपडिबिंबो की भूमिका एक साथ लिखी है । अतः उसे दोनों पुस्तकों में दिया गया है। इन काव्यों की प्रतिलिपि करने में मुझे मुनि श्रेयांसकुमारजी का सहयोग मिला अतः उनके प्रति भी मैं अपनी मंगल भावना व्यक्त करता हूं। ___मुनि श्री नवरत्नमलजी, सुमेरमलजी 'सुदर्शन', ताराचंदजी, हीरालालजी तथा धर्मरुचिजी का भी मैं आभारी हूं जिनका सहयोग मुझे मिलता रहे। - मुनि विमलकुमार जैन विश्व भारती । लाडनूं (राजस्थान) ता.२५ मार्च,१९९६
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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