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________________ पएसीचरियं ८२ १२-१३-१४. कुछ दिन बीते । एक दिन ज्ञानदर्शनसंपन्न, ओजस्वी, जितेन्द्रिय, तप और चारित्र से संपन्न, तेजस्वी, जनतारक, परीषहजयी, चार ज्ञान से परिपूर्ण, चौदह पूर्वो से संपन्न केशी नामक आचार्य पाँच सौ शिष्यों सहित वहां आये। १५-१६. आचार्य का आगमन सुनकर जनता उनके सर्वपापनाशक दर्शन की इच्छुक होकर अहंपूर्विका अपने घर से रवाना हुई । गृहांगन में आई हुई गंगा में कौन स्नान नहीं करता? १७-१८-१९. राजमार्ग से जाते हुए मनुष्यों को देखकर विस्मित हुए सारथि चित्र ने एक कंचुकि पुरुष को बुलाकर पूछा- क्या नगर में आज कोई महोत्सव है ? जिससे मनुष्य नदी के पूर की तरह अभी जा रहे हैं ? सारथि के वचन को सुनकर उसने कहा २०. आज नगर में कोई महोत्सव नही है । किंतु आज नगर में केशी नामक महामुनि आये हैं। २१. वे नगर के बाहर कोष्ठक नामक चैत्य में ठहरे हैं । ये मनुष्य उनके दर्शन करने के लिए जा रहे हैं। २२-२३. उसके वचन को सुनकर चित्र ने मन में सोचा–जिसके दर्शन के लिए बहुत मनुष्य जा रहे हैं निश्चित ही वह महान् व्यक्ति है । अत: मुझे भी जाना चाहिए और उसके दर्शन कर स्वयं को धन्य बनाना चाहिए। २४. ऐसा विचार कर वह उस महामुनि के दर्शन करने के लिए कोष्ठक चैत्य में गया।
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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