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________________ जिसका यौवन पगला जाता है, उसे नींद नहीं आती। वह मन-ही-मन पुष्पसेना के रूप-लावण्य को पी रहा था। रात के तीन प्रहर बीत गए। चौथे प्रहर में उसे कुछ नींद आयी । किन्तु यह नींद भी मधुर स्वप्नमयी थी। उसने स्वप्न में देखा कि वह पुष्पसेना को चोपड़ के खेल में हराकर विजयी हुआ है और वह पुष्पसेना के साथ कामक्रीड़ा कर रहा है। इतने में ही एक दासी ने राजकुमार को जगाते हुए कहा - 'कुमार श्री ! प्रात:काल हुए विलम्ब हो गया है।' स्वप्न से चौंककर रत्नसिंह जागृत हुआ । हर्षविभोर होकर राजकुमार बोल उठा - 'मेरे भाग्य का सूर्योदय हो गया है।' दूसरे दिन । रत्नसिंह पुष्पसेना के भवन में पहुंचा। वहां सारी व्यवस्थाएं थीं। दोनों ने शर्तपत्र पर हस्ताक्षर किए और चोपड़ का खेल प्रारंभ किया । दोनों चोपड़ खेलने में निष्णात थे । और एक ही घटिका में खेल सम्पन्न हो गया । पुष्पसेना ने दो दांव जीत लिये । वह विजयिनी हुई। रत्नसिंह का चेहरा पीला पड़ गया । पुष्पसेना बोली- 'राजकुमार ! अपनी शर्त का पालन करें।' राजकुमार खड़ा हुआ और धारण किए हुए सारे अलंकार उतारकर नीचे रख दिए। पुष्पसेना ने उसे एक कक्ष में कैद कर दिया । यह बात सारी नगरी में फैल गई। नगर के लोगों में भारी खलबली मच गई। इन तीन महीनों में दूसरे दस व्यक्ति भी पुष्पसेना के दास बन चुके थे। यह बात महाराज विक्रमादित्य तथा युवराज देवकुमार ने भी सुनी। पुष्पसेना की समस्या चिरन्तन समस्या- सी बन चुकी थी । युवराज देवकुमार ने पुष्पसेना को पराजित करने का निश्चय किया। युवराज्ञी मनमोहिनी जानती थी कि युवराज चोपड़ खेलने में इतने निष्णात नहीं हैं और वे निश्चित ही पुष्पसेना से पराजित हो जाएंगे। उसने मन-ही-मन निश्चय किया कि मैं उसे अवश्य हराऊंगी ! यह बात उसने महाराजा विक्रम को बताई । विक्रम बोले- 'बेटी ! तुम ? पुष्पसेना केवल पुरुषों के साथ ही खेलती है।' 'यह मैं जानती हूं। मैं पुरुषवेश में उसे पराजित करूंगी।' वीर विक्रम मनमोहिनी की बात से सहमत हो गए। कुछ दिन बाद । वीर विक्रमादित्य ४३३
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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