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________________ युवराज देवकुमार राजकार्य में व्यस्त हो गए और मालिनी के सहवास के क्षणों को अपने मन के एक कोने में दबाकर स्वस्थ हुए। मनमोहिनी शांतिपूर्वक समय बिता रही थी। यदा-कदा माता-पिता भी मिलने आ जाते थे और उन्होंने यह निश्चय कर लिया था कि जब मोहिनी नौवें मास में प्रवेश करेगी तब उसे भवन में ले जाना है। ऐसा ही हुआ। जब मोहिनी ने नौवें मास में प्रवेश किया तब उसकी सखी सदृश प्रियदासी सुभद्रा भूगर्भगृह में आ गई। मनमोहिनी ने उसे सारी बात बताते हुए समझाया कि उसे किस प्रकार से अभिनय करना है। सखी समझ गई। मनमोहिनी पितृगृह में चली गई। नौ मास और दस दिन बीते। मनमोहिनी ने एक सुन्दर, स्वस्थ और तेजस्वी पुत्ररत्न का प्रसव किया। सवा मास पूरा हुआ। मनमोहिनी स्वस्थ, सुन्दर बालक के साथ प्रसूतिगृह से बाहर निकली और पूर्वयोजना के अनुसार रात्रि में अपने प्रिय बालक को लेकर भूगर्भगृह में चली गई। उसकी दासी वहां से भवन में आ गई। रात्रिकाल तो आनन्दपूर्वक बीत गया, किन्तु प्रात:काल जब कारागार की रक्षिका नन्दा उस खिड़की के पास आयी तब मनमोहिनी की गोद में बालक रो रहा था। बच्चे के रोने की आवाज सुनकर नंदा चौंकी। 'अरे, देवी ! बालक का रुदन कहां से आ रहा है?' 'यहीं से आ रहा है।' 'किन्तु यहां बालक कैसे आ गया?' मनमोहिनी जोर से हंस पड़ी। वह बोली- 'पगली! भाग्यदेवता जब प्रसन्न होते हैं तब अनहोनी भी होनी हो जाती है। यह मेरा पुत्र है। चिन्ता मत करना।' नंदा अवाक रह गई। वह सारे काम छोड़कर सीधी राजभवन पहुंची। महाराज ने नंदा को देखकर पूछा-'नंदा ! क्या हुआ?' 'कृपानाथ! अघटित घटित हुआ है।' 'क्या मनमोहिनी ने आत्महत्या कर ली?' 'नहीं, कृपानाथ! जहां एक चिड़िया भी प्रवेश नहीं पा सकती वहां....।' 'क्या है वहां? कहते क्यों हिचक रही है?' 'किन्तु कृपानाथ! मुझे क्षमा करें। मैं क्षणभर के लिए भी असावचेत नहीं रही।' 'किन्तु हुआ क्या है?' वीर विक्रमादित्य ४२१
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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