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________________ देवकुमार भी स्नान आदि से निवृत्त होकर तैयार बैठा था। कुछ ही समय पश्चात् सुकुमारी, महादेवी विजया और देवकुमार - तीनों रथ में बैठकर नगरी के बाहर वाले भवन की ओर चल पड़े। आज पूरे पन्द्रह वर्षों के पश्चात् सुकुमारी ने अपने चिर-परिचित भवन में प्रवेश किया। पन्द्रह वर्षों से वह कोठरी बन्द पड़ी थी। सुकुमारी ने कोठरी का ताला खोला, दरवाजे को कुछ क्षणों तक खुला रख वह अन्दर गयी । वीर विक्रम द्वारा प्रदत्त पेटी ज्यों की त्यों पड़ी थी। उस पर धूल की परतें चढ़ चुकी थीं। सुकुमारी पेटी उठाकर बाहर आ गयी। मां ने कहा- 'बेटी ! ऐसी महत्त्व की बात मुझे इतने वर्षों तक याद नहीं आयी ? चलो, अब इसे राजभवन में जाकर ही खोलेंगे ।' ऐसा ही हुआ । राजभवन में पहुंचने के पश्चात् महाराजा शालिवाहन के समक्ष सुकुमारी ने पेटी खोली। उसमें एक ताड़पत्र, एक राजमुद्रिका और पांच अत्यन्त मूल्यवान् अलंकार थे। रत्नों की चमचमाहट देखकर सब विमूढ़ रह गए। सुकुमारी के लिए अलंकार मूल्यवान् नहीं थे, किन्तु उसके लिए दो ही मूल्यवान् थे - एक राजमुद्रिका और एक ताड़पत्र । सुकुमारी ने सबसे पहले ताड़पत्र खोलकर पढ़ा। पढ़ते-पढ़ते वह हर्षविभोर हो उठी। उसके चेहरे पर अपार आनन्द की ऊर्मियां अठखेलियां करने लगीं। देवकुमार मां की ओर अपलक नयनों से देख रहा था। उसने मन ही मन सोचा, अवश्य ही इस ताड़पत्र में मेरे पिताश्री का परिचय है । सुकुमारी मन ही मन उस ताड़पड़ को पढ़ गयी। वह हर्ष से आत्मविभोर हो उठी। उसके नयनों से हर्ष के आंसू निकल पड़े। वे कपोल से लुढ़ककर ताड़पत्र पर पड़ने लगे । सभी आश्चर्य से सुकुमारी को देखने लगे । 1 मां ने पूछा - 'सुकुमारी ! क्या इस ताड़पात्र में उनका अता-पता है ?' सुकुमारी ने लज्जाभाव से पत्र पिता के हाथ में रख दिया। शालिवाहन ने भी मन ही मन सारा पत्र पढ़ डाला। उनका चेहरा भी खिल उठा। वे हर्ष भरे स्वरों में बोले- 'देवी! हृदय में आनन्द का सागर उमड़ रहा है। हमारे दामाद कोई छोटीमोटी शक्ति नहीं हैं। वे मालवदेश के स्वामी महाराज - राजेश्वर परदुःखभंजक वीर विक्रमादित्य हैं । ' 'आप क्या कह रहे हैं ?' 'मैं सच कह रहा हूं।' महाराजा ने कहा। फिर देवकुमार की ओर दृष्टि पसारकर बोले - 'बेटा! तू वास्तव में ही एक महान् और प्रतापी पिता का पुत्र है । ' वीर विक्रमादित्य ३४१
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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