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________________ 'यह तो अच्छा कार्य है। तुम साथ नहीं गए ?' 'नहीं, महाराज! प्रिया साथ में हो और पल-पल उसके लिए तरसना पड़े, इससे तो वियोग का संगीत ही अच्छा है। एक बात और है, हमारी जाति में दामाद को साथ में नहीं रखते ।' 'मित्र ! मुझे तुम्हें बार-बार परेशान करना पड़ता है .... । ' 'मैं आपका आभार मानता हूं', बीच में ही वैताल प्रसन्न स्वर में बोल उठा - 'महाराज ! आपकी मित्रता ने मुझमें धर्म में रुचि पैदा की है और विशेष बात यह है कि आपके कार्य में सहयोगी बनने में मुझे बहुत आनन्द मिलता है । क्या आज्ञा है ?' 'मुझे दो दंड प्राप्त हो चुके हैं, यह तुम जानते हो। यहां से तीन दंड मुझे और प्राप्त हो सकते हैं और आज संध्या के पश्चात् हमें उस दिशा में प्रयत्न करना है', कहकर वीर विक्रम ने चंपकलता और उसकी तीनों सखियों की बात संक्षेप में कह सुनाई । 'यह तो बहुत उत्तम कार्य है। मैं आपको पाताललोक में ले चलूंगा।' 'तुम मेरे साथ अदृश्य रूप में रहना । तुम्हें मेरा रूप बदल देना पड़ेगा।' 'यह तो सहज कार्य है । ' 'तो तुम मुझे बारह वर्ष का बालक बना दो ।' 'अभी?' 'हां, फिर हम यहां से विदा होंगे।' वैताल ने तत्काल वीर विक्रम को बारह वर्ष का बालक बना दिया। फिर दोनों हरिमती के घर गए। खोज करने पर ज्ञात हुआ कि चंपकलता वहां उपस्थित नहीं है, शेष तीनों सखियां वहां एकत्रित हो गई हैं और पाताललोक में जाने की तैयारी कर रही हैं।' हरिमती के पास भूमि - विस्फोट दंड था । गोपा के पास विषापहर दंड था। विजया के पास मणि दंड था । तीनों सखियां घर से बाहर निकलीं। माली की कन्या विजया ने नागलोक के विवाहोत्सव पर भेंट देने के लिए उत्तम पुष्पों की अनेक मालाएं, गजरे आदि से एक करंडक भरकर साथ में ले लिया। वह कुछ भारी हो गया था। उसने अपने कंधों पर रखकर वहां से प्रस्थान किया और अपने मोहल्ले से बाहर निकलकर कहा-' - 'हमें सबसे पहले सरोवर के पास जाना होगा। वहां से पाताललोक का मार्ग निकट पड़ेगा और हम तीनों को स्नान - शुद्ध होना होगा । ' वीर विक्रमादित्य ३०६
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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