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________________ घर जाकर नागदमनी ने पुत्री से पूछा- 'बेटी! तेरा हार जाना मेरे लिए नयी बात है। शतरंज के खेल में तू इतनी निष्णात है कि तुझे कोई जीत नहीं सकता। परन्तु तू हार गई। यह कैसे हुआ? राजराजेश्वर ने तेरी गुप्त बात कैसे जान ली? मंत्रशक्ति के बल पर ही तू इतनी दूर गई थी। महाराजा इतनी दूर जा सकें, यह असंभव था....सायंकाल जब मैंने पूछताछ की तो पता चला कि महाराजा भवन में ही हैं....और रात्रि-चर्चा के लिए भी नगर में गए थे।' 'मां! मैं कुछ भी नहीं जान सकी।' 'कोई बात नहीं है, बेटी! तेरी हार में भी तेरे जीवन का आनन्द छिपा हुआ है। सात-सात जन्म तक तप करने पर भी ऐसे स्वामी नहीं मिल सकते....जो कुछ हुआ है, वह अच्छा ही हुआ है। किन्तु विवाह के पश्चात् तुझे अपनी मर्यादा में रहना है।' 'हां, मां! अवंतीनाथ की रानी के पद-गौरव को मैं सुरक्षित रखूगी। मैं अपनी साधना को एक ओर रख दूंगी, केवल स्वामी की इच्छा के अधीन ही रहूंगी।' देवदमनी ने कहा। 'इस बात से मैं निश्चिन्त हूं...किन्तु महाराज के और भी अनेक रानियां हैं। तुझे उन सबके साथ दूध-मिश्री की तरह रहना होगा।' 'हां, मां! अनन्त जन्मों की तपश्चर्या से प्राप्त स्वामी के अनुकूल रहंगी....एक बात का मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हं कि तुम्हारे पास छोटी-बड़ी कोई भी शिकायत नहीं आयेगी।' देवदमनी ने हृदय के भाव कहे। पुत्री की यह बात सुनकर मां नागदमनी अत्यन्त प्रसन्न हुई। और राजभवन के सारे समाचार वायु-वेग से प्रसृत हो गए थे। सबसे पहले वीर विक्रम ने कमला और कला को अपनी विजय का संवाद सुनाया। स्वामी का विजय-संवाद सुनकर दोनों रानियां अत्यन्त हर्षित होकर स्वामी के चरणों में झुक गईं। विक्रम ने दोनों का आलिंगन कर कहा, 'यह विजय मेरी नहीं है, यह तुम दोनों की भावना का परिणाम है।' यह चर्चा चल ही रही थी, अन्त:पुर की अन्यान्य रानियां भी अपना हर्ष व्यक्त करने के लिए वहां आ पहुंचीं। वीर विक्रम ने प्रत्येक रानी का आश्लेष लेते हुए उनकी प्रसन्नता को बढ़ाया और प्रत्येक रानी को एक-एक रत्नहार अर्पित करने की बात कही। जैसे ये समाचार राजभवन में फैल गए थे, उसी प्रकार रात्रि के प्रथम प्रहर में पूरी नगरी में महाराजा की विजय और मंत्रशक्ति-सम्पन्न देवदमनी की पराजय का समाचार भी प्रसृत हो गया। वीर विक्रमादित्य २३३
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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