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________________ 'तो फिर आपको कौन-सी चिन्ता व्यथित कर रही है?' 'प्रिये! तुम साम्राज्ञी होने के योग्य हो-मैं तो एक छोटा-सा कलाकार हूं।' तत्काल विक्रम के मुंह पर हाथ देती हुई सुकुमारी बोल उठी- 'स्वामिन्! यह कैसी चिन्ता? स्त्री अपनी पसन्द के पुरुष को स्वीकार करती है। उसे किसी दूसरे की अभिलाषा नहीं रहती।' 'मुझे बहुत बार ऐसा लगता है कि यदि मैं किसी महान् राज्य का स्वामी होता तो तुमको....।' बीच में ही हंसते हुए सुकुमारी ने कहा- 'तब तो मैं आपकी अर्धांगिनी कभी नहीं बनती।' 'ओह! तुम ऐसा क्यों मानती हो कि संसार में कलाकार ही श्रेष्ठ होता है। मालवपति विक्रमादित्य एक महान् वीर होते हुए भी श्रेष्ठ कलाकार हैं।' 'वे कुछ भी क्यों न हों-मेरे लिए तो आप ही राज-राजेश्वर हैं, हृदयेश्वर हैं, मेरे स्वप्नों के सम्राट् हैं।' 'प्रिये ! मैं धन्य हुआ। एक प्रश्न है कि तुम्हारे रूप की प्रशंसा सुनकर कोई चतुर राजा कलाकार का छद्मवेश धारण कर तुम्हें प्राप्त कर लेता तो....?' 'जो घटित ही नहीं हुआ, उसकी कल्पना करना व्यर्थ हैं' 'यह तो मैं केवल तुम्हारा मनोभाव जानने के लिए कह रहा हूं। यदि ऐसा हो जाता और बाद में तुम्हें ज्ञात होता तो तुम क्या करती?' 'स्वामिन ! मैं ऐसे छद्मवेशी पति से सदा दूर ही रहती।' 'तब तो प्रिये! नारी के सतीत्व का आदर्श ही क्या रहा?' 'आदर्श क्यों नहीं। हा,यह अवश्य है कि मेरा जीवन शून्य हो जाता। सतीत्व की रक्षा करना तो मेरा धर्म है, तप है और इसीलिए छद्मवेशी से दूर रहना मुझे पसन्द है। अरे! किन्तु आज आप ऐसे प्रश्न क्यों कर रहे हैं?' "प्रिये ! कारण के बिना कोई प्रश्न होता ही नहीं?' 'मैं समझी नहीं।' 'तुम्हारे उदर में पुत्ररत्न पल रहा है। यदि मैं किसी राज्य का सम्राट् होता तो मेरे पुत्र को उस महाराज्य का स्वामी बना देता। तुम्हारे उदर में पलने वाला पुत्र क्या जीवन-भर कंगाल ही बना रहेगा? यह प्रश्न भी अनेक नये प्रश्न उपस्थित करता है।' सुकुमारी ने हंसते हुए कहा-'आप तो विचित्र कल्पना के जाल में फंस गये। हमारा पुत्र एक कलाकार बनेगा-मेरे और आपके तेज का प्रतीक बनेगा और उसे यहां भी राजसुख मिलता रहेगा।' वीर विक्रमादित्य १३५
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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