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________________ वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन सद्-आचार और विचार ही गृहस्थाचार है। घर में रहकर भी गृहस्थ सदाचरण द्वारा परिवार, समाज एवं राष्ट्र के समुन्नयन में अपना बड़ा योगदान देता है। सुदर्शनोदय महाकाव्य में गृहस्थाचार के विषय में कहा है कि "किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करें'- इस आर्ष-वाक्य को धर्म के विषय में प्रमाण मानते हुए अपराधी जीवों की भी यथाशक्ति रक्षा करना चाहिये तथा निरपराध प्राणियों की तो विशेष रूप से रक्षा करना चाहिये। यथा – मा हिंस्यात्सर्वभूतानीत्यार्ष धर्मे प्रमाणयन् । सागसोऽयङ्गिनो रक्षेच्छक्त्या किन्नु निरागसः ।। 41 || सुदर्शनो. सर्ग. 4 | सदा उत्तम सत्य वचन बोले, दूसरे से मर्मच्छेदक और निन्दापरक सत्य वचन भी न कहे, किसी की बिना दी हुई वस्तु न लेवे और अपनी उन्नत को चाहने वाला पुरूष दूसरे का उत्कर्ष देखकर मन में असहनशीलता (जलन-कुढ़न) का त्याग करे। दूसरे की शय्या का (अर्थात् पुरूष परस्त्री के और स्त्री पर-पुरूष के सेवन का) त्याग करे और पर्व के दिनों में पुरूष अपनी स्त्री का और स्त्री अपने पुरूष का सेवन न करे। सदा अनागिष-भोजी रहे, (मांस को कभी न खावे) किन्तु अन्न-भोजी और शाकाहारी रहे एवं . वस्त्र से छने हुए जल को पीवें। यथा प्रशस्तं वचनं ब्रूयाददत नाऽऽददीत च। परोत्कर्षासहिष्णुत्वं जह्याद्वाञ्छन्निजोन्नतिम् ।। 42 ।। सुदर्शनो. सर्ग. 4 | न क्रमेतेतरत्तल्पं सदा स्वीयञ्च पर्वणि। अनामिषाशनीभूयाद्वस्त्रपूतं पिबेज्जलम् ।। 43।। - सुदर्शनो. सर्ग. 4। गृहस्थ मदमोह (नशा) उत्पन्न करने वाली मदिरा, भांग, तम्बाकू आदि नशीली वस्तुओं का सेवन न करें। विनीत भाव धारण करके वृद्धजनों की आज्ञा स्वीकारें। सभी के उपकार के लिये गृहस्थाचार सुखदायक साधारण (सामान्य, सरल) धर्म-मार्ग है, परमार्थ की इच्छा से तुम्हें इसे
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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