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________________ आचार्यश्री ज्ञानसागर और उनके महाकाव्यों की समीक्षा 63 . है। उसने मन में विचार किया कि सुदर्शन अष्टमी और चतुर्दशी की रात्रि में शमशान में प्रतिमायोग में ध्यानशील होते हैं। अतः इस अवस्था में उन्हें पूजा हेतु मिट्टी के पुतले के बहाने रनिवास में लाया जा सकता है। (षष्ठ सर्ग) उस दासी ने मानवाकार मिट्टी का एक पुतला बनवाया। रात्रि में उसे वस्त्र से अच्छी तरह ढककर पीठ पर लाद कर अन्तःपुर में प्रवेश करने का ज्यों ही प्रयत्न किया, त्यों ही द्वारपाल ने उसे बीच में ही रोक दिया। तब दासी ने द्वारपाल से निवेदन किया कि रानी अभयमती एक व्रत कर रही हैं, जिसमें उन्हें मनुष्य के पुतले को पूजना है। यह पुतला मैं उसी उद्देश्य से भीतर ले जा रही हूँ। अतः मुझे जाने दो। द्वारपाल ने दासी की एक न सुनी और अन्दर आती हुई दासी को धक्का देकर जैसे ही बाहर किया, तो पीठ पर रखा पुतला गिरकर टूट गया तो दासी ने जोर-जोर से रोना और द्वारपाल को अपशब्द कहना प्रारम्भ कर दिया। द्वारपाल ने रानी के भय के कारण क्षमा याचना करते हुए उसे अन्दर जाने की अनुमति दे दी। इसप्रकार द्वारपाल की ओर से निश्चिन्त होकर चतुरा दासी राजमहल में प्रतिदिन पुतले लाने लगी। __. एक दिन कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी की रात्रि में सुदर्शन शमशान में ध्यानावस्था में बैठा था। दासी ने वहाँ पहुँचकर पहले तो सुदर्शन को रानी के सहवास हेतु प्रेरित एवं उत्तेजित किया, पर जब सुदर्शन की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, तो उसने उन्हें उसी ध्यान-दशा में अपनी पीठ पर लाद कर रोज की भांति अन्तःपुर में ले जाकर रानी के पलंग पर बैठा दिया। सुदर्शन को अपने समीप पाकर रानी बहुत प्रसन्न हुई। उसने वचनों से सुदर्शन को उत्तेजित करने का बहुत प्रयत्न किया। अनेक कामचेष्टायें कीं; जिससे सुदर्शन का ध्यान तो टूटा पर वैराग्य भावना और भी अधिक दृढ़ हो गई। फलस्वरूप उनके ऊपर रानी की काम-चेष्टाओं का कुछ भी • असर नहीं हुआ। अपनी चेष्टाओं को निष्फल देखकर निराश रानी ने दासी से कहा कि "इसे बाहर कर दो" | पर दासी ने समझाया कि इस प्रकार उसे बाहर
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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