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________________ आचार्य श्री ज्ञानसागर और उनके महाकाव्यों की समीक्षा दृढतापूर्वक आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो गये। ( सप्तविंशति सर्ग) जयकुमार सर्व बाह्य परिग्रह छोड़कर मुनि हो गये और घोर तपश्चरण करने लगे। वे भ. ऋषभदेव के गणधर बने । अन्त में मोक्ष प्राप्त किया। सुलोचना ने भी ब्राह्मी आर्यिका के समक्ष दीक्षा ले ली और साधना कर अन्त में अच्युत स्वर्ग में इन्द्र हो गई। 55 यहाँ पर पूर्व कवियों का स्मरण करते हुये इस महाकाव्य की समाप्ति की गई है। (अष्टाविंशति सर्ग) जयोदय महाकाव्य के कथानक की ऐतिहासिकता भरत चक्रवर्ती के समकालीन जयकुमार का आख्यान आदिपुराण में मिलता है। यहाँ इसका वर्णन मर्यादित है। अतः इस महाकाव्य के कथानक को पौराणिक या ऐतिहासिक कहा जा सकता है। ऐतिहासिक महाकाव्यों की परम्परा में पद्मगुप्त परिमलकृत 'नव साहसाङ्कचरित' / विल्हण का 'विक्रमांक देवचरित / तथा कल्हण की 'राजतरंगिणी आदि काव्य आते हैं। जैनाचार्य हेमचन्द्र ( 1089 - 1173 ई.) का कुमारपालचरित / विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में हुए सोमेश्वर का सुरथोत्सव और कीर्तिकौमुदी / अरिसिंहकृत 'सुकृत संकीर्तन / और बालसूर का बसन्त विलास' -ये जयोदय महाकाव्य की ऐतिहासिकता के आधार हैं । 'नयचन्द्रसूरि रचित हमीर महाकाव्य / काश्मीरी कवि जयानक का' पृथ्वीराज विजय / और वाक्पति राज का 'गडबहों / प्राकृत में निबद्ध ऐतिहासिक काव्यों में अपनी विशिष्टता के कारण नितांत प्रख्यात हैं। 2 देवप्रभ सूरि का 'पाण्डवचरित / कृष्णानन्द का 'सहृदयानन्द' / वामन भट्टवाण का 'नलाभ्युदय' / वस्तुवाल रचित 'नरनारायणानन्द', / साकल्यमल्ल रचित 'उदारराघव' / सोमेश्वर कवि का 'सुरथोत्सव / गोविन्द मरवी का 'हरिवंश - सारचरित' / वेंकटेश्वर का 'रामचन्द्रोदय' एवं 'रघुवीर चरित' नामक महाकाव्य भी इसी परम्परा में आते हैं। जयोदय महाकाव्य पर महावीर - चरित - परम्परा का प्रभाव जयोदय महाकाव्य पर महावीर - चरित - परम्परा का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। भगवान महावीर के समय से विक्रम की 20वीं शताब्दी
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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