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________________ वीरोदय महाकाव्य का सांस्कृतिक एवं सामाजिक विवेचन 251 प्रक्रिया में परिवार का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। मातृ-स्नेह, पितृ-प्रेम, दाम्पत्य-आसक्ति, सन्तान-वात्सल्य, सहयोग और संघर्ष परिवार के मुख्य आधार हैं। इन्हीं आधारों पर परिवार का प्रासाद निर्मित होता है। संयुक्त पारवार के तीन घटक हैं। (1) दाम्पत्य सम्बन्ध, (2) माता-पिता व सन्तान का सम्बन्ध, (3) भाई-भाई या भाई-बहिन का संबंध । भारत में प्राचीन काल से ही संयुक्त परिवार प्रथा रही है। परिवार के सभी सदस्य एक ही स्थान पर रहते थे, एक जगह बनाया हुआ भोजन करते थे तथा सभी एक दूसरे की भावनाओं का आदर करते थे। सबसे बड़ा व्यक्ति (पिता) ही परिवार का मुखिया होता था। सभी उनकी आज्ञा का पालन करते थे। माता गृहस्वामिनी होती थी, जो परिवार के सभी कार्यों का ध्यान रखती थीं। प्राचीन काल में परिवार की आय का मुख्य स्त्रोत कृषि कार्य था। सभी परिजन कृषि कार्य करते थे। महिलाएं गृहकार्य बच्चों की देखभाल तथा वृद्धों की सेवा-शुश्रूषा किया करती थी। वर्तमान में संयुक्त परिवारों का विघटन होता जा रहा है। व्यक्ति गांवों में ही संयुक्त परिवारों में रहते हैं, जबकि शहरों में अधिकांश अकेले ही रहते हैं। आज के युग में हर पढ़ा लिखा व्यक्ति शहरों में काम करना चाहता है। अतः वह अपना घर-परिवार छोड़कर शहरों में अकेला ही रहता है। प्राचीनकाल में नारी घर की चहारदीवारी में बंद रहती थी। पर अब वह शिक्षा प्राप्त कर नये-नये व्यवसायों से जुड़ रही है, जिससे वह भी संयुक्त परिवारों में किसी के अधीन नहीं रहना चाहती। ____ आचार्यश्री ने वीरोदय में राजा सिद्धार्थ और रानी प्रियकारिणी के दाम्पत्य जीवन के अत्यन्त मधुर सम्बन्धों का चित्रण किया है। राजा सिद्धार्थ को रानी प्राणों से भी प्यारी थी और रानी को राजा भी प्राणों से प्रिय था। उन दोनों में परस्पर अत्यन्त अनुराग था। यथा - असुमाह पतिं स्थितिः पुनः समवायाय सुरीतिवस्तुनः। स मतां ममतामुदाहरदजडः किन्तु समर्थकन्धरः ।। 35।। -वीरो.सर्ग.3।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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