SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 224 वीरोदय महाकाव्य और म. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन 6. श्रृंगार रस प्रस्तुत महाकाव्य में श्रृंगार का चित्रण विस्तार के साथ भव्यरूप में किया गया है। पूरे काव्य में पाँच ऋतु-वर्णनों में श्रृंगाररस का वर्णन करके कवि ने अपनी साहित्यिक प्रतिभा को प्रकट किया है। वे श्रृंगार को रसराज (6-37) एवं उसके अधिष्ठातृ देवता काम को जगत् का शासक तक कहते हैं। (स्मरस्तु साम्राज्यपदे नियुक्तः 21-18) कुचं समुद्घाटयति प्रिये स्त्रियाः समुद्भवन्ती शिशिरोचितश्रियाः । तावत्करस्पर्शसुखैकलोपकृत् सूचीव रोमाञ्चततीत्यहो सकृत् ।। 20 ।। -वीरो.सर्ग:9। __ इस श्लोक में शीतकाल में रमणी विशेष के साथ उसके पति द्वारा विविध काम-लीलाओं का सेवन वर्णित है। यहाँ पति-पत्नी एक दूसरे के लिए आलम्बन-विभाव हैं। वस्त्र का निस्सारण एवं पति की मन्द मुस्कान क्रमशः एक दूसरे के प्रति उद्दीपन-विभाव है। रोमांच, कर-स्पर्शादि अनुभाव हैं। हर्ष, स्मृति आदि व्यभिचारी-भाव हैं। भावों के सम्मिश्रण से परस्पर एक दूसरे के प्रति रतिभाव की पुष्टि होने से श्रृंगाररस की अनुभूति/प्रतीति होती है। कुण्डनपुर के वर्णन में - प्रासादश्रृंगाग्रनिवासिनीनां मुखेन्दुमालोक्य विधुर्जनीनाम् । नम्रीभवन्नेष ततः प्रयाति हियेव सल्लब्धकलंकजातिः।। 43 ।। सौधाग्लग्नबहुनीलमणिप्रभाभिर्दोषायितत्वमिह सन्ततमेव ताभिः । कान्तप्रसंगरहिता खलु चक्रवाकी वापीतटेऽप्यहनि ताम्यति सा वराकी।। 45 ।। -वीरो.सर्ग.21 7. रौद्र रस रौद्ररस महावीर के पूर्व-भवों के चिन्तन में विशाखनन्दी-प्रकरण में देखने को मिलता है। एक उदाहरण प्रस्तुत है - हन्ताऽस्मि रे त्वामिति भावबन्धमथो समाधानि मनः प्रबन्धः । तप्त्वा तपः पूर्ववदेव नामि स्वर्ग महाशुक्रमहं स्म यामि।। 16 ।। -वीरो.सर्ग.111
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy