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________________ वीरोदय का काव्यात्मक मूल्यांकन 197 उदाहरण - परागनीरोद्भरितप्रसून-श्रृंगैरनगै कसखा मुखानि। मधुर्धनी नाम वनीजनीनां मरूत्करेणोक्षतु तानि मानी।। 13 ।। -वीरो.सर्ग.6। उक्त पद्य में न्, र, एवं म, ध इत्यादि वर्गों की पुनरावृत्ति हो रही है। इसी प्रकार ग्रन्थारभ्म के मंगलाचरण वाले श्लोक में सेवा तथा मेवा और हृदोऽपि में भी अन्त्यानुप्रास की छटा मनोहारी है। श्रिये जिनः सोऽस्तु यदीयसेवा समस्तसंश्रोतृजनस्य मेवा। द्राक्षेव मृद्वी रसने हृदोऽपि प्रसादिनी नोऽस्तु मनाक् श्रमोऽपि।। 1।। -वीरो.सर्ग.11 2. यमक लक्षण - 'अर्थे सत्यर्थभिन्नानां वर्णानां सा पुनः श्रुतिः यमकम्।' __ अर्थ होने पर भिन्नार्थक वर्णो की पुनः उसी क्रम से आवृत्ति यमक कहलाती है। उदाहरण - समाश्रिता मानवताऽस्तु तेन समाश्रिता मानवतास्तु तेन। पूज्येष्वथाऽमानवता जनेन समुत्थसामा नवता ऽपनेन।। 12 || -वीरो.सर्ग.171 इस श्लोक में प्रथम चरण की आवृत्ति द्वितीय चरण में की गई। अतः यहाँ 'मुख-यमक' है। इसी श्लोक के प्रथम चरण का मध्य "ग दूसरे चरणों के मध्य भाग में आवृत्त हुआ है। अतः यह एक देशज मध्य-यमक भी है।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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