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________________ 188 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन उपजाति छन्द बन जाता है। आचार्यश्री ने वीरोदय के 503 श्लोकों (पद्यों) को इस छन्द में निबद्ध किया है। लक्षण –अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजौ पादौ यदीयावुपजातयस्ताः । इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु वदन्ति जातिष्विदमेव नाम ।। इस छन्द का प्रयोग श्रृंगाररस के आलम्बनभूत, उदात्त नायिकाओं के रूप वर्णन, वसन्तऋतु के वर्णन में किया जाता है। वसन्त ऋतु के वर्णन में इसका प्रयोग इस प्रकार है - श्लोकन्तु लोकोपकृतौ विधातुं पत्राणि वर्षा कलमं च लातुम् । विशारदाऽभ्यारभते विचारिन् भूयो भवन् वार्दल आशुकारी।। 13।। -वीरो.सर्ग.41 __ प्रयोग के अन्य स्थल - प्रायः सभी सर्गों में प्रयुक्त। द्वितीय सर्ग - 2, 5, 7 | षष्ठ सर्ग - 1, 2| नवम सर्ग – 12, 14, 16, 22, 35, 44 | एकोनविंश सर्ग - 2-4, 10-21, इत्यादि। अनुष्टुप् छन्द आचार्यश्री के ग्रन्थ में पद्यों की परिगणना से सुस्पष्ट है कि अनुष्टुप् छन्द उनका अपर प्रिय छन्द है। उन्होंने 178 पद्यों में इस छन्द को प्रयुक्त किया है। लक्षण-श्लोके षष्ठं गुरू ज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चकम् । द्वि-चतुष्पादयोहस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः।। उदाहरण - सौरभावगतिस्तस्य पद्मस्येव वपुष्यभूत् । याऽसौ समस्तलोकानां नेत्रालिप्रतिकर्षिका।। 41 ।। -वीरो.सर्ग.6। प्रयोग स्थल – षष्ठ सर्ग सप्तम सर्ग - 37 | अष्टम सर्ग - 1-45 । दशम सर्ग - 1-37 | पञ्चदश सर्ग - 1-60 । द्वाविंशतितम सर्ग - 28-32|
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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