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________________ वीरोदय का स्वरूप 135 राजा दधिवाहन चम्पानगरी के प्रतिपालक राजा दधिवाहन और उसकी रानी पद्मावती भी भ. महावीर के उपदेशों से प्रभावित होकर जैनधर्म का पालन करने लगे थे। यथा - चम्पाया भूमिपालोऽपि नामतो दधिवाहनः। पद्मावती प्रिया तस्य वीरमेतौ तु जम्पती।। 18।। -वीरो.सर्ग.15। राजाकरकण्डु राजा दधिवाहन की पत्नी पद्मावती को गर्भावस्था में इच्छा हुई कि वह पुरूषवेश धारण कर सिर पर छत्र लगाकर वर्षा में हाथी पर बैठकर विहार करे। राजा ने रानी की इच्छा पूर्ति हेतु कृत्रिम वर्षा की व्यवस्था की और सिर पर छत्र लगाकर पुरूषवेश में हाथी पर बैठाकर राजा सेना के • साथ नगर के बाहर निकला। अपनी जन्म स्थली विन्ध्य-भूमि का स्मरण आने से हाथी रानी को लेकर वन की ओर भाग गया। राजा तो चम्पानगरी लौट आये पर हाथी निर्जन वन में चला गया। वहाँ रानी ने साध्वियों के उपाश्रय में पुत्र करकण्डु को जन्म दिया। नवजात शिशु को रत्नकम्बल में लपेट कर श्मसान में छोड़कर रानी छिपकर बैठ गई। जब श्मसान का मालिक चाण्डाल बच्चे को उठाकर ले गया तो रानी उपाश्रय में साध्वियों के यहाँ पहुँची और उनसे कहा- "मृत पुत्र हुआ था, मैने उसे छोड़ दिया।" करकण्डु बड़ा होकर कांचनपुर का राजा बना। राजा दधिवाहन इन्द्रभूति गौतम से शाश्वत सुख का मार्ग जानकर तीर्थकर महावीर के समोशरण में ही दीक्षित हो गया था और कालान्तर में करकण्डु ने भी विरक्त होकर दीक्षा ले ली थी। राजा जीवन्धर दक्षिण भारत में कर्नाटक के हेमागंद देश में तीर्थंकर महावीर का समवरशरण पहुँचा। यहाँ के सुरमलय उद्यान में धर्मसभा जुड़ी। जीवन्धर ने अत्यन्त समारोह पूर्वक वीरसंघ का स्वागत किया और परिजनों के साथ
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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