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________________ 128 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन क्रांतिदृष्टा क्रान्ति की चिनगारी महावीर के व्यक्तित्व में प्रारम्भ से थी। धर्म के नाम पर होने वाली हिंसायें और समाज के संगठन के नाम पर विद्यमान भेद-भाव एवं आत्म-साधना के स्थान पर शरीर-साधना की प्रमुखता ने महावीर के मन में किशोरावस्था से ही क्रान्ति का बीज वपन किया था। धर्म और दर्शन के स्वरूप को औद्धत्य, स्वैराचार, हठ और दुराग्रह ने खण्डित कर दिया था। वर्ग-स्वार्थ की दूषित भावनाओं से अहिंसा, मैत्री और अपरिग्रह को आत्मसात् कर लिया था। फलतः समाज के लिये एक क्रान्तिकारी व्यक्ति की आवश्यकता थी। महावीर का व्यक्तित्व ऐसा ही क्रान्तिकारी था। वास्तव में उनके क्रान्तिकारी व्यक्तित्व को प्राप्त कर धरा पुलकित हो उठी, शत-शत वसन्त खिल उठे। श्रद्धा, सुख और शान्ति की त्रिवेणी, प्रवाहित होने लगी और उनके क्रान्तिकारी व्यक्तित्व से कोटि-कोटि मानव भी कृतार्थ हुये। निस्सन्देह पतितों और गिरों को उठाना, उन्हें गले से लगाना और कर-स्पर्श द्वारा उनके व्यक्तित्व को परिष्कृत कर देना यही तो क्रान्तिकारी का लक्षण है। महावीर की क्रान्ति जड़ नहीं, सचेतन थी, गतिशील थी। पुरूषोत्तम महावीर पुरूषोत्तम थे। उनके बाह्य और आभ्यन्तर व्यक्तित्वों में अलौकिक गुण समाविष्ट थे। निष्काम भाव से जनकल्याण करने के कारण उनका आत्मबल अनुपम था। वे संसार-सरोवर में रहते हुये भी कमलपत्रवत् निर्लिप्त थे। उनका व्यक्तित्व पुरूषोत्तम विशेषण से युक्त था। क्योंकि ब्रह्मचर्य की उत्कृष्ट साधना और अहिंसक अनुष्ठान ने उनको पुरूषोत्तम बना दिया था। वे तपःभूत पुरुषोतम थे। श्रेष्ठ पुरूषोचित सभी गुणों का उनमें समवाय था। निःस्वार्थ महावीर के व्यक्तित्व में निःस्वार्थ साधक के समस्त गुण समवेत हैं। वे न उपसर्गों से घबराते थे और न परीषह सहन करने से ही। वे सभी
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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