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________________ वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन में आती रही और उसे चिन्ह-युक्त देखकर हर बार वह उसे छोड़ता गया। अन्त में वह खाली हाथ ही घर लौटा। पति को खाली हाथ आता देखकर उसकी घण्टा नाम की स्त्री ने उस पर क्रोध प्रकट किया और शीघ्र ही झोपड़ी का द्वार बन्द कर लिया। - मृगसेन बाहर ही पञ्च नमस्कार मन्त्र का स्मरण कर एक पुराने काठ पर सो गया। रात्रि में एक सर्प ने आकर उसके प्राण हर लिये। प्रातःकाल घण्टा उसे मरा हुआ देखकर अत्यधिक शोकाकुल हो गई और "जिस पवित्र व्रत का पालन इसने किया; मैं भी उसी का पालन करूँगी। अगले जन्म में भी यही मेरा स्वामी हो- "ऐसा निश्चय करके उसने मृगसेन के साथ ही अग्नि में प्रवेश कर लिया। विशाला नगरी में विश्वंभर नामक राजा और बिम्बगुणा रानी रहते थे। उसी नगर में गुणपाल सेठ और धनश्री सेठानी भी साथ रहते थे। उनकी सुबन्धु नाम की पुत्री थी। धनश्री के गर्भ में मृगसेन धीवर का जीव आया। राजा विश्वंभर ने अपने मन्त्री-पुत्र नर्मधर्म के लिये गुणपाल से उसकी पुत्री सुबन्धु की याचना की, किन्तु नर्मधर्म के दुराचरण से भयभीत गुणपाल के मन में सुबन्धु को देने का साहस नहीं हुआ। सर्वनाश - रोकने हेतु गुणपाल ने अपनी गर्भिणी स्त्री को अपने मित्र श्रीदत्त सेठ के घर ठहरा दिया और पुत्री को लेकर चुपचाप कौशाम्बी नगर में पहुँच गया। . एक दिन श्रीदत्त के घर शिवगुप्त और गुप्त नामक दो मुनिराज आये। वहाँ गर्भणी धनश्री को देखकर गुप्त मुनिराज ने ज्येष्ठ मुनिराज से पूँछा- कि "कौन दुःखदायी पुत्र इसके गर्भ में है, जिसके कारण यह स्त्री इतनी दुःखी दिखाई दे रही है"? - यह सुनकर शिवगुप्त मुनिराज ने कहा कि “यह सेठानी अभी तो दुःखी दिखाई दे रही है, लेकिन दुःख के दिन बीत जाने पर इसका पुत्र जैनधर्म का धुरन्धर होगा। राजश्रेष्ठी के पद को प्राप्त करके विश्वंभर राजा की कन्या का पति होगा। दुष्ट श्रीदत्त मुनिराज के वचनों को सुनकर गर्भस्थ बालक को मारने की इच्छा करने लगा।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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