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________________ 79 आचार्यश्री ज्ञानसागर और उनके महाकाव्यों की समीक्षा इसीप्रकार तुरीयोपनिषद् में कहा है कि सब कुछ को जल में विसर्जन करके दिगम्बर इत्यादि ।' सन्यासोपनिषद् में भी लिखा है कि सब कुछ छोड़कर देह मात्र को धारण करते हुए तत्काल के पैदा हुए बालक सरीखा दिगम्बर निर्विकार हो जावे तथा सन्यासी तत्काल के पैदा हुये बालक सरीखा होता है। इत्यादि रूप से जगह-जगह साधु का स्वरूप दिगम्बर ही लिखा हुआ मिलता है। किञ्च अयि दयिते! पुराणग्रन्थेषु तु भूरिश एव दिगम्बरप्रशंसाऽस्ति। नग्नरूपो . महाकायः सितमुण्डो महाप्रभः। मार्जिनीं शिखिपत्राणां कक्षायां स हि धारयन्।। . पुराण-ग्रन्थों में तो दिगम्बर की कई जगह प्रशंसा आई है। पद्मपुराण के भूमि-काण्ड के अध्याय पैंसठ में लिखा है- 'जो साधु नग्न रूप को धारण किये हुये है, लम्बे कद का है, सफेद शिर वाला है, अच्छा कान्ति वाला है और अपनी कांख में एक मोर पंखों की पीछी लिये हुये है। पद्मासनः समासीनः श्याममूर्ति दिगम्बरः। नेमिनाथः शिवोऽथैवं नाम चन्द्रस्य वामन !|| . इसी प्रकार स्कन्धपुराण के प्रभास-खण्ड के छठे अध्याय में भी लिखा है- 'हे वामन! आप ठीक समझो कि जो पद्मासन से बैठे हुए है, काले शरीर वाले हैं, दिगम्बर (वस्त्र रहित) हैं वे नेमिनाथ ही कल्याण रूप शिव के रूप हैं' इत्यादि। दयोदय की कथावस्तु की प्राचीनता को व्यक्त करते हुये ऋग्वेद के मण्डल 2 अध्याय 4 सूक्त 30 में लिखा है कि "हे अर्हन्! आप धर्म रूप वाणों को, उत्तम उपदेश रूप धनुष को, अनन्त ज्ञानादि रूप आभूषणों को धारण करते हो, संसारी लोगों के रक्षक हो एवं काम क्रोधादि-शत्रुओं को भगाने वाले भी हो, आपके समान दूसरा बलवान् नहीं है।" इत्यादि । ऋग्वेद के मण्डल 5 अध्याय छह के सूक्त छियासी में लिखा है कि- “समुद्र सरीखे क्षोभ-रहित श्री अर्हन्त भगवान से शिक्षा पाकर ही देव लोग पवित्र बनते हैं। ऋग्वेद के मण्डल 2 अध्याय 11 सूक्त
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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