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________________ हेमचंद्र की प्रमाणमीमांसा में प्रमाणलक्षण समझा। परवर्ती श्वेताम्बर आचार्यों ने भी विद्यानन्द का ही अनुसरण किया है। अभयदेव, वादिदेवसूरि और हेमचन्द्र सभी ने प्रमाण-लक्षण-निर्धारण में 'अपूर्व' पद को आवश्यक नहीं माना है। जैन परम्परा में हेमचन्द्र तक प्रमाण की जो परिभाषाएँ दी गई हैं, उन्हें पं. सुखलालजी ने चार वर्गों में विभाजित किया है - १. प्रथम वर्ग में स्व पर अवभास वाला सिद्धसेन (सिद्धर्षि) और समन्तभद्र का लक्षण आता है, स्मरण रहे कि ये दोनों लक्षण बौद्धों एवं नैयायिकों के दृष्टिकोणों के समन्वय का फल है। २. इस वर्ग में अकलंक और माणिक्यनन्दी की अनधिगत, अविसंवादि और अपूर्व लक्षण वाली परिभाषाएँ आती हैं। ये लक्षण स्पष्ट रूप से बौद्ध मीमांसकों के प्रभाव से आए है। ज्ञातव्य है कि न्यायावतार में बाधविवर्जित' रूप में अविसंवादित्व का लक्षण आ गया है। ३. तीसरे वर्ग में विद्यानन्द, अभयदेव और वादिदेवसूरि के लक्षणवाली परिभाषाएँ आती है जो वस्तुतः सिद्धसेन (सिद्धर्षि) और समन्तभद्र के लक्षणों का शब्दान्तरण मात्र है और जिनमें अवभास पद के स्थान पर व्यवसाय या निर्णीत पद रख दिया गया ४. चतुर्थ वर्ग में आचार्य हेमचन्द्र की प्रमाण-लक्षण की परिभाषा आती है, जिसमें 'स्व', बाधविवर्जित, अनधिगत या अपूर्व आदि सभी पद हटाकर परिष्कार किया गया है। यद्यपि यह ठीक है कि हेमचन्द्र ने अपने प्रमाण-लक्षण निरूपण में नयी शब्दावली का प्रयोग किया है, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि उन्होंने अपने पूर्व के जैनाचार्यों के प्रमाण-लक्षणों को पूरी तरह से छोड दिया है। यद्यपि इतना अवश्य है कि हेमचन्द्र ने दिगम्बराचार्य विद्यानन्द और श्वेताम्बरचार्य अभयदेव और वादिदेवसूरि का अनुसरण करके अपने प्रमाण-लक्षण में अपूर्व पद को स्थान नहीं दिया है। पं. सुखलालजी के शब्दों में उन्होंने 'स्व' पद, जो सभी पूर्ववर्ती जैनाचार्यों की परिभाषा में था, निकाल दिया। अवभास, व्यवसाय आदि पदों को दाखिल किया और उमास्वाति, धर्मकीर्ति, भासर्वज्ञ आदि के सम्यक् ' पद को अपनाकर 'सम्यगर्थनिर्णयः' प्रमाण के रूप में अपना-प्रमाणलक्षण प्रस्तुत किया। इस परिभाषा या प्रमाण-लक्षण में 'सम्यक्' पद किसी सीमा तक पूर्ववर्ती आचार्यों द्वारा प्रयुक्त बाधविवर्जित या
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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