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________________ कुमारी मूकमाटी-मीमांसा :: 431 "हमारी उपास्य-देवता/अहिंसा है/और/जहाँ गाँठ-ग्रन्थि है वहाँ निश्चित ही/हिंसा छलती है।" (पृ. ६४) नारी जाति के प्रति सदैव पूज्य भाव रखने वाली भारतीय संस्कृति का स्वर 'मूकमाटी' में गूंजा है। कवि ने नारी तथा उसके पर्यायवाची शब्दों की अनूठी किन्तु व्याकरणिक व्याख्याएँ की हैं : नारी- न + अरि = जो किसी की शत्रु न हो । जो आरि नहीं, वो नारी। महिला- "जो/मह यानी मंगलमय माहौल,/महोत्सव जीवन में लाती है महिला कहलाती वह ।।...मही यानी धरती धृति-धारणी जननी के प्रति/अपूर्व आस्था जगाती है । और पुरुष को रास्ता बताती है/सही-सही गन्तव्य का महिला कहलाती वह।" (पृ. २०२) अबला "बला यानी समस्या संकट है/न बला'"सो अबला।" (पृ. २०३) " 'कु' यानी पृथिवी/'मा' यानी लक्ष्मी/और 'री' यानी देनेवाली"/इससे यह भाव निकलता है कि यह धरा सम्पदा-सम्पन्ना/तब तक रहेगी। जब तक यहाँ 'कुमारी' रहेगी।" (पृ. २०४) स्त्री " 'स्' यानी सम-शील संयम/'त्री' यानी तीन अर्थ हैं धर्म, अर्थ, काम-पुरुषार्थों में/पुरुष को कुशल-संयत बनाती है सो स्त्री कहलाती है।" (पृ. २०५) आगे मातृ, सुता, दुहिता आदि शब्दों की नवीन व्याख्याएँ प्रस्तुत करके नारी समाज के प्रति आदर और आस्था भाव महाकाव्य में कवि ने प्रकट किए हैं। नारी की गरिमा को कृतिकार ने जहाँ बढ़ाया है वहाँ उसके कर्तव्यों को भी स्मरण कराना वह नहीं भूला है। मातृत्व के कर्तव्य पूर्ण किए बिना उसका उक्त पद प्राप्त करना सार्थक नहीं होता : "सुत को प्रसूत कर/विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करने मात्र से माँ का सतीत्व वह/विश्रुत - सार्थक नहीं होता प्रत्युत,/सुत-सन्तान की सुसुप्त शक्ति को/सचेत और शत-प्रतिशत सशक्त-/साकार करना होता है, सत्-संस्कारों से । ...सन्तान की अवनति में/निग्रह का हाथ उठता है माँ का और/सन्तान की उन्नति में/अनुग्रह का माथ उठता है माँ का ।" (पृ. १४८) आचरण से ही व्यक्ति बड़ा या छोटा है । कवि ने समाज की स्थापित मान्यता वर्ण, जाति, कुल आदि की व्यवस्थाओं को नकारा नहीं है किन्तु जन्म के पश्चात् आचरण के अनुरूप ऊँचे और नीचेपन को स्वीकार किया है। "वर्ण का आशय/न रंग से है/न ही अंग से वरन्/चाल-चरण, ढंग से है ।" (पृ. ४७) कवि ने अपनी 'मानस तरंग' (पृ. XXIV) में लिखा है : “'संकर-दोष' से बचने के साथ-साथ वर्ण-लाभ को मानव जीवन का औदार्य व साफल्य माना है। जिसने शुद्ध-सात्त्विक भावों से सम्बन्धित जीवन को धर्म कहा है; जिसका
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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