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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 323 करना अपमान समझता है। 0 "मित्रों से मिली मदद/यथार्थ में मद-द होती है।" (पृ. ४५९) 0 "उतार दो इसे "तार दो !" (पृ. १६१) पहली मदद' का अर्थ सहायता है। दूसरी 'मद-द' का अर्थ मदान्ध बनाना है। इसी प्रकार 'तार' शब्द 'तृ' शब्द मूल से व्युत्पन्न हुआ है। 'तृ' से 'तर' तथा 'तार' शब्द मूल व्युत्पन्न होते हैं। 'तर' का अर्थ 'तरना' है । 'उतार' शब्द 'उद्' या 'उत्+तार' प्रक्रिया से व्युत्पन्न हुआ है। ___ उक्त काव्यरचना में यौगिक शब्दों द्वारा भी बद्ध तथा मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा अभिनव अर्थों की अभिव्यंजना हुई है, यथा : "अगर बाती को अगरबाती का/योग नहीं मिलता तो"।" (पृ. १३४) 'अगर बाती' शब्द मुक्त संक्रमण तथा अगरबाती' बद्ध संक्रमण की प्रक्रिया से सम्बद्ध हैं। अगर बाती' यौगिक शब्द में 'अगर' प्रतिबन्धित वाक्य रचना में क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुआ है। अगरबाती' में अगर शब्द 'अगरु' का रूपान्तर है। "किसलय ये किसलिए/ किस लय में गीत गाते हैं ?" (पृ. १४१) पहला 'किसलय' बद्ध तथा दूसरा 'किस लय' मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया को द्योतित करता है। पहले 'किसलय' का अर्थ रक्ताभ-वर्ण के कोमल पत्तों से है तथा दूसरे 'किस लय' का अर्थ किस लय (गीत की लय) में है। कोमल दलों का पवन के मन्द-मन्द झोकों से आन्दोलित होकर मरमर की ध्वनि करना उनका गीत है। "मर, हम 'मरहम' बनें...!" (पृ. १७५) 'मर हम' मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया से हम मरकर अर्थ को स्पष्ट कर रहा है और 'मरहम' बद्ध संक्रमण की प्रक्रिया से व्युत्पन्न शब्द हैं। दोनों शब्द संक्रमण के प्रभेदों से पृथक्-पृथक् अर्थों को व्यक्त करते हैं : "मैं दो गला"/इस से पहला भाव यह निकलता है, कि/मैं द्विभाषी हूँ भीतर से कुछ बोलता हूँ/बाहर से कुछ और"/पय में विष घोलता हूँ। ....मैं दोगला/छली, धूर्त, मायावी हूँ ...सब विभावों-विकारों की जड़/'मैं" यानी/अहं को दो गला-कर दो समाप्त ।" (पृ. १७५) उपर्युक्त छन्द में रचनाकार ने मुक्त तथा बद्ध संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा 'दो गला' के तीन अर्थ स्पष्ट किए हैं। बद्ध संक्रमण की प्रक्रिया की दृष्टि से दोगला शब्द के दो अर्थ हैं : १. द्विभाषी २. कपटी ‘गला' शब्द 'गल्' शब्द मूल से निकला है। गल का अर्थ है बोलना, कहना । पंजाबी में गल का अर्थ है वार्ता । जहाँ सोचने तथा कहने में एकरूपता न हो, उसे दोगला कहते हैं। मुक्त संक्रमण की स्थिति में दो गला का अर्थ है गला दो अर्थात्
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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