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________________ 226 :: मूकमाटी-मीमांसा धि की जड़ता पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को बाण छोड़ना ही पड़ा । समुद्र की जड़ता ने ऐसा करने के लिए उन्हें विवश कर दिया था। अन्त में समुद्र विनयपूर्वक श्री राम के समक्ष प्रस्तुत होता है और उनकी इच्छानुसार कार्य करने को सहर्ष तैयार हो जाता है । 'रामचरित मानस' के 'सुन्दर काण्ड' में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं : D O " विनय न मानत जलधि जड़, गये तीन दिन बीति । बोले राम सकोप तब, भय बिन होंहिं न प्रीति ॥ " "अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा...। संधाने प्रभ बिसिख कराला, उठी उदधि उर अंतर ज्वाला ।” " समय सिन्धु गहि पद प्रभु केरे / छमहु नाथ सब अवगुन मेरे I "" O इस प्रकार सर्वं-सहा होने का स्वभाव सन्त स्वभाव के लिए ही उपयुक्त है । उस स्तर तक जाने पर गृहस्थ की मर्यादा और उसका सम्मान तड़प उठेगा । इस खण्ड में कवि ने प्रभाकर द्वारा स्त्री जाति के भीरु स्वभाव एवं उसकी विवशता तथा कुछ परुष पुरुष द्वारा किए गए अत्याचारों का संकेत किया है। यह स्त्री समाज के सुधार की भावना है जो कवि की बहुमुखी दृष्टि की द्योतक है । यह जाति कितनी दयालु होती है। यह दया, कारणवश नहीं, अपितु सहज-स्वाभाविक है : " स्त्री - जाति की कई विशेषताएँ हैं/ जो आदर्श रूप हैं पुरुष के सम्मुख । प्रतिपल परतन्त्र हो कर भी / पाप की पालड़ी भारी नहीं पड़ती / पल-भर भी ! इनमें, पाप-भीरुता पलती रहती है / अन्यथा, /स्त्रियों का नाम 'भीरु' क्यों पड़ा ? प्राय: पुरुषों से बाध्य हो कर ही / कुपथ पर चलना पड़ता है स्त्रियों को / परन्तु, कुपथ- सुपथ की परख करने में / प्रतिष्ठा पाई है स्त्री-समाज ने । ... इनका सार्थक नाम है 'नारी' / यानी - / 'न अरि' नारी / अथवा ये आरी नहीं हैं / सोनारी *** जो / मह यानी मंगलमय माहौल, / महोत्सव जीवन में लाती है 'महिला' कहलाती वह । /... पुरुष को रास्ता बताती है / सही-सही गन्तव्य का... अबला के अभाव में/ सबल पुरुष भी निर्बल बनता है समस्त संसार ही, फिर, / समस्या-समूह सिद्ध होता है, ... धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थों से / गृहस्थ जीवन शोभा पाता है . पुरुष की वासना संयत हो, / और / पुरुष की उपासना संगत हो, बस, इसी प्रयोजनवश / वह गर्भ धारण करती है। संग्रह-वृत्ति और अपव्यय - रोग से / पुरुष को बचाती है सदा, अर्जित - अर्थ का समुचित वितरण करके । / दान-पूजा - सेवा आदिक सत्कर्मों को, गृहस्थ धर्मों को / सहयोग दे, पुरुष से करा कर धर्म - परम्परा की रक्षा करती है ।" (पृ. २०१ - २०५ ) नारी, महिला, अबला, स्त्री, सुता, दुहिता आदि शब्दों पर शोधपरक खोज आकर्षक है। नारी पक्ष इतना उज्ज्वल चित्रित है, जो अन्यत्र दुर्लभ है । कुम्भकार द्वारा मुक्त हस्त से मुक्ता का दान, पुण्य वृत्ति का द्योतक है, क्योंकि
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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