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________________ 208 :: मूकमाटी-मीमांसा तुच्छ वस्तु युग-युग से भवभ्रमित होकर अपने उद्धार का मार्ग खोज रही है । किन्तु सम्यक् ज्ञानाभाव के कारण वह भटकन की नियति को भोगने को अभिशप्त है । संसार का प्रत्येक प्राणी सुख-शान्ति की खोज में दिग्भ्रमित है । सम्पूर्ण मानव जाति आतंकवाद के साए में घुट-घुटकर जी रही है। उसे इस घुटन से मुक्ति के लिए अहिंसा का मार्ग अपनाना होगा, तभी आतंकवाद का अन्त और अनन्तवाद का श्रीगणेश होगा। 'मूकमाटी' किसी वर्ग, जाति, सम्प्रदाय, धर्म, संस्कृति एवं समाज को उजागर करने वाला महाकाव्य नहीं है, अपितु सम्पूर्ण मानव जाति को उत्कर्ष के शिखर पर पहुँचाने वाला महाकाव्य है। मूक माटी महाकाव्य की नायिका है जिसे अनन्तकाल से कुम्भकार की प्रतीक्षा है, क्योंकि वह उसे मंगल घट का स्वरूप प्रदान करेगा । माटी की वेदना को उसी के श्रीमुख से आचार्यवर ने अभिव्यंजित करवाया है : "स्वयं पतिता हूँ/और पातिता हूँ औरों से, "अधम पापियों से/पद-दलिता हूँ माँ !" (पृ. ५) ___ आगे कविवर ने माटी की अव्यक्त पीड़ा को अनुभूत करते हुए उसकी पीड़ा-वेदना को अभिव्यक्ति प्रदान करते हुए पुन: कहलवाया है: "इस पर्याय की/इति कब होगी ?/इस काया की/च्युति कब होगी ? बता दो, माँ''इसे !/"कुछ उपाय करो माँ !/खुद अपाय हरो माँ ! और सुनो,/विलम्ब मत करो/पद दो, पथ दो/पाथेय भी दो माँ !" (पृ. ५) उपर्युक्त पंक्तियों से पूर्व की बीस-तीस पंक्तियों में आचार्यवर ने माटी की वेदना-व्यथा की इतनी तीव्र, प्रगाढ़ एवं मार्मिक अभिव्यक्ति प्रदान की है कि यह एक करुण गाथा-सी प्रतीत होती है । माँ-बेटी वार्तालाप को कवि ने नदी की धारा सदृश अचानक नया मोड़ देते हुए अपनी दार्शनिकता का अभिव्यंजन किया है । इस काव्य ग्रन्थ में कवि के द्वारा प्रतिपादित प्रत्येक तथ्य, तत्त्व दर्शन की सार्थकता से सम्पृक्त है। ___महाकाव्य के लिए नायक-नायिका का होना भी आवश्यक माना गया है । इसमें प्राकृतिक परिवेश तो है, वर्णन कौतूहलता भी है, परन्तु एक प्रश्न जो बहुत देर तक स्पष्ट नहीं हो पाता है, वह है-इस महाकाव्य का नायक कौन है ? सीधे तौर पर इस समस्या का समाधान नहीं हो पाता है । माटी तो नायिका रूप में अपनी सार्थकता सिद्ध कर पाने में समर्थ हो जाती है परन्तु नायक का स्वरूप देर तक स्पष्ट नहीं हो पाता। कुम्भकार को नायक माना जा सकता है । परन्तु नायक-नायिका के मध्य घटित होने वाले रोमांस का अभाव खटकता है । यहाँ रोमांस की स्थिति विद्यमान नहीं है। और यदि है भी तो माटी रूपी नायिका को कुम्भकार के द्वारा परिष्कृत, परिशोधित होने के लिए युग-युग तक इंतज़ार करना पड़ा है कि कब कुम्भकार उसके समक्ष उपस्थित होकर उसे इस संक्रमण की दशा से उबारते हुए सुन्दर घट के रूप में परिवर्तित करेगा? माटी की मूक वेदना, उसकी करुण पुकार एक साधक-सहृदय कवि ही श्रवण कर सकता है, साधारण कवि हृदय नहीं । कवि ने माटी की महान् महिमा को उद्घाटित किया है । उपर्युक्त आलोक में यह नामकरण अपने आप में अनुपम और अनूठा है। प्रस्तुत काव्य में सामयिक स्थिति, राजनीति, समाज और धर्म का यथार्थ चित्रण हुआ है । इस रूप में यह ग्रन्थ तत्कालीन समाज, राजनीति और धर्म का दर्पण बन गया है। प्रस्तुत महाकाव्य माटी की उस प्राथमिक दशा के परिशोधन की प्रक्रिया को अभिव्यक्ति प्रदान करता है जहाँ
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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