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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 431 नितान्त सटीक उत्तर है, जैसे : "सत्ता शाश्वत होती है, बेटा!/प्रति-सत्ता में होती हैं अनगिन सम्भावनायें/उत्थान-पतन की,/खसखस के दाने-सा बहुत छोटा होता है/बड़ का बीज वह !" (पृ. ७) आज के वैषम्य, मानवीय सन्त्रास, विविध संघर्ष, हिंसा और विभीषिका के मूल में सत्ता की, मिथ्या सुख की अदम्य आकांक्षा और आस्था के शाश्वत, दृढ़ सम्बल का अभाव ही तो मुख्य बिन्दु है । आचार्यश्री चिन्तक के ऊँचे पद से उतरकर एक भावुक कवि की धरती पर आसीन होकर जो घोषणा करते हैं उसे सामान्य पाठक का मन भी सहज स्वीकार करता है, जैसे : "उजली-उजली जल की धारा/बादलों से झरती है धरा-धूल में आ-धूमिल हो/दल-दल में बदल जाती है। वही धारा यदि नीम की जड़ों में जा मिलती/कटुता में ढलती है।" (पृ. ८) तभी तो यह निष्कर्ष है : "जैसी संगति मिलती है/वैसी मति होती है/मति जैसी, अग्रिम गति मिलती जाती"मिलती जाती"।" (पृ. ८) मानव-जीवन में सुख-दु:ख, उत्थान-पतन का चक्र चिरन्तन है । आचार्यजी ने इस कठोर सत्य को अपनी स्वाभाविक, लौकिक काव्यमयी उपमाओं से सहज बना दिया है, जैसे : “पर्वत की तलहटी से भी/हम देखते हैं कि/उत्तुंग शिखर का दर्शन होता है,/परन्तु/चरणों का प्रयोग किये बिना शिखर का स्पर्शन/सम्भव नहीं है !" (पृ. १०) 'आस्था ही जीवन है'- यह सन्देश युगों से हमारे सामने रहा है किन्तु आचार्यजी ने अपनी अभिनव तार्किकता से उसे निश्चित ही अनुकरणीय बना दिया है। उन्हीं के शब्दों में : "आस्था के तारों पर ही/साधना की अँगुलियाँ/चलती हैं साधक की, सार्थक जीवन में तब/स्वरातीत सरगम झरती है !" (पृ. ९) जीवनधारा के दोनों किनारों-उच्चता और निम्नता की पहचान आवश्यक है । वस्तुत: मानवीय दुर्बलताएँ निराशा का विषय नहीं हैं। ये दुर्बलताएँ ही हमारे लिए उच्चता के नापने की तुला हैं। इस सम्बन्ध में प्रस्तुत दृष्टान्त कितना सटीक एवं बोधगम्य है : “आस्था के बिना रास्ता नहीं/मूल के बिना चूल नहीं/परन्तु मूल में कभी/फूल खिले हैं ?" (पृ. १०) ज्ञान और दर्शन के जटिल मार्ग को सुगम बनाने में इस कृति की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हमारे लिए उक्ति और सूक्ति का भण्डार एकत्र करती हैं, जैसे : “अति के बिना/इति से साक्षात्कार सम्भव नहीं/और/इति के बिना
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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