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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 279 फिर कहना ही क्या !" (पृ.७२) विसंगतियाँ धर्म के क्षेत्र में भी फैली हुई हैं । अवसरवादिता व्यक्ति, समाज एवं राजनीति के साथ धर्म में भी व्याप्त है: “कहाँ तक कहें अब !/धर्म का झण्डा भी/डण्डा बन जाता है शास्त्र शस्त्र बन जाता है/अवसर पाकर।" (पृ. ७३) आज भारतीय समाज में भी पद और पैसे का अनुचित महत्त्व बढ़ गया है। ऐसा लगता है मानों धन जीवन के लिए नहीं, अपितु जीवन ही धन के लिए है : " "वसुधैव कुटुम्बकम्"/इसका आधुनिकीकरण हुआ है 'वसु' यानी धन-द्रव्य/'धा' यानी धारण करना/आज धन ही कुटुम्ब बन गया है/धन ही मुकुट बन गया है जीवन का।" (पृ. ८२) ___ सागर ने धरती का धन हरण किया। चन्द्रमा को घूस दी, परन्तु न्याय-पथ का पथिक सूर्य उसका विरोध करता रहा। घूसखोर, भ्रष्टाचारी, परधनलम्पट लोगों के लिए ऐसे ईमानदार लोग राह का काँटा बन जाते हैं। वे उन्हें अपनी ओर मिलाने का भरसक प्रयत्न करते हैं। पहले समझाते हैं, लालच देते हैं और नहीं मानने पर रास्ते से हटा देते हैं या हटवा देते हैं । सागर का पक्षधर बादल सूर्य को समझाता है कि सागर का पक्ष ग्रहण कर ले और : "कर ले अनुग्रह अपने पर,/और,/सुख-शान्ति-यश का संग्रह कर ! अवसर है,/अवसर से काम ले/अब, सर से काम ले !" (पृ. २३१) सचमुच ऐसे हठी ईमानदार लोग आज की धूर्त दुनिया को मूर्ख नज़र आते हैं। अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए केवल उपाय ही पर्याप्त नहीं, विघ्नों का उपशमन भी अनिवार्य है : "उपाय की उपस्थिति हो/पर्याप्त नहीं,/उपादेय की प्राप्ति के लिए अपाय की अनुपस्थिति भी अनिवार्य है। और वह अनायास नहीं, प्रयास-साध्य है।" (पृ. २३०) और इस विघ्न को हटाने के लिए सागर ने राहु को भड़काया । आपके सम्मुख मनमानी करता है सूर्य । धरती की सेवा के बहाने आपका उपहास करता है । सागर केवल धनलोभी लुटेरा ही नहीं, धनसंचय के लिए हर प्रकार के हथकण्डे अपनाने वाला आधुनिक धनी है। राहु की चाटुकारिता कर उससे अपनी स्वार्थसिद्धि करता है। यान में भर-भर कर झिलमिल-झिलमिल अनगिनत निधियाँ राहु के घर पहुँचाता है। राहु का घर अनुद्यम प्राप्त अमाप निधि से भर जाता है, और मस्तिष्क विष-सी विषम पापनिधि से। समुद्र के बहाने पर-सम्पदा को हरण करने वाले व्यक्ति की ओर संकेत है : “पर-सम्पदा हरण कर संग्रह करना/मोह-मूर्छा का अतिरेक है । यह अति निम्न-कोटि का कर्म है/स्व-पर को सताना है, नीच-नरकों में जा जीवन बिताना है।" (पृ. १८९) आज अर्थ की भूख ने बड़ों-बड़ों को निर्लज्ज बनाया है :
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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