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________________ " संयम के बिना आदमी नहीं / यानी / आदमी वही है जो यथा - योग्य / सही आदमी है ।" (पृ. ६४ ) मूकमाटी-मीमांसा :: 165 मछली आत्मा का प्रतीक है। मछली भू पर आने को कृत संकल्पिता तब होती है जब सारहीन विकल्पों को छोड़ जाती है । उसी प्रकार आत्मा का उत्थान तभी होता है जब वह सारहीन विकल्पों से मुक्ति पाता है। कूप आध्यात्मिक तत्त्व की गहराई का प्रतीक है और बालटी उत्थान का प्रतीक है। कूप की गहराई में बालटी डुबकी लगाकर जिस प्रकार पानी लेकर फिर ऊपर उठती है उसी प्रकार जीवन से सम्बन्धित आध्यात्मिकता की गहराई में डुबकी लगाकर उत्थान की बालटी ऊपर आ जाती है। इस प्रकार महान् संस्कृति के निर्माण मात्र से मनुष्य आस्तिक बन जाता । ऐसा ही मनुष्य श्रमण संस्कृति के परम श्रद्धेय पूज्य ईश्वर के स्वरूप को पा सकता है। यही दिशाबोध 'मूकमाटी' के प्रथम खण्ड 'संकर नहीं : वर्ण - लाभ' से मिलता है । शिल्पी उस माटी को कुम्भ में बदलने के लिए किन-किन पद्धतियों को अपनाते हुए सफल हुआ, वह दूसरे खण्ड--‘शब्द सो बोध नहीं : बोध सो शोध नहीं' में बताया गया है। कुम्भकार माटी के प्रतीक मानव के गुरु का प्रतीक है। कुम्भकार छनी हुई माटी में निर्मल जल मिलाता है। निर्मल जल आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक है। निर्मल जल माटी में मिला देने से वह जिस प्रकार कोमल हो जाती है उसी प्रकार आध्यात्मिकता के अवलोकन, संकलन और अनुभव मात्र मानव का गुण बदल जाता है। उसका गुण, शील, भाव, चाल-चलन, जीवन निर्वाह आदि सब में भारी परिवर्तन आ जाता है । मनुष्य के स्वभाव में आदि से ही प्रेम है : " स्वभाव से ही / प्रेम है हमारा / और स्वभाव में ही / क्षेम है हमारा ।" (पृ. ९३) फूल और शूल दोनों संसार में विद्यमान हैं। फूल कोमल होता है। शूल तीखे होते हैं। फूल में गन्ध होती है। शूल कठिन होता है । कवि समझाते हैं कि फूल-शूल से ऊपर उठकर फल तक पहुँच जाना ही मानव का लक्ष्य है : “लोक- ख्याति तो यही है / कि / कामदेव का आयुध फूल होता है और/ महादेव का आयुध शूल // एक में पराग है / सघन राग है जिसका फल संसार है / एक में विराग है / अनघ त्याग है जिसका फल भव- पार है ।" (पृ. १०१-१०२ ) फूल का महत्त्व फूल का है । शूल का महत्त्व भी है जो भव- पार का साधन है । केवल शब्दों को जानने मात्र • से सब कुछ नहीं हो सकता । शब्दों का अर्थ भी जानना चाहिए, वही बोध है : "बोध का फूल जब / ढलता-बदलता, जिसमें वह पक्व फल ही तो / शोध कहलाता है ।" (पृ. १०७) जब फल पक जाता है तो वह मीठा हो जाता है । उसमें रस होता है । बोध पकते ही शोध हो जाता है । इसलिए : "फूल का रक्षण हो / और / फल का भक्षण हो; / हाँ ! हाँ !! फूल में भले ही गन्ध हो / पर, रस कहाँ उसमें !" (पृ. १०७ ) शोध का परिणाम मोक्ष के धाम तक पहुँचना है । मोह और मोक्ष का अन्तर स्पष्ट करते हुए विद्यासागरजी कहते हैं कि अपने को छोड़कर पर - पदार्थ से प्रभावित होना ही मोह का परिणाम है :
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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