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________________ 26 :: मूकमाटी-मीमांसा ४४८), मनोऽनुशासन (पृ. १०९, १९८, ९७), रस विधान (पृ.१३०-१६०), नारी के प्रति उदात्त भावना (पृ. १०, १०५) आदि। ___ इन सारे प्रसंगों में माटी से मंगल घट तक की यात्रा में जितने भी जड़ या चेतन तत्त्व निमित्त कारण हैं वे सभी यहाँ पात्र बनकर आए हैं। यहाँ तक कि बालटी, मछली, काँटा, कंकर, कुदाली, गधा, चाक, पानी, दण्ड, रंग, बादल, सागर, नाव, ओला, फूल, पवन, अवा, अग्नि, धुआँ, स्वर्णकलश, मशाल, दीपक, गज, सर्प, सिंह आदि को भी पात्र बनाया है। इनकी पात्रता पर हमारा प्रश्नचिह्न खड़ा करना निरर्थक होगा क्योंकि ये सभी उपादान की शक्ति को उद्घाटित करने या उसके विश्लेषण करने के लिए किसी न किसी रूप में सहयोगी सिद्ध होते हैं । यही काव्य की दार्शनिकता है। अभिव्यंजना शिल्प अभिव्यंजना शिल्प कवि की अनुभूतिपरक अभिव्यक्ति की क्षमता का द्योतक है । यह क्षमता अथवा प्रतिभा उसके काव्य में प्रयुक्त भाषा, बिम्ब, प्रतीक, अलंकार, ध्वनि, छन्द आदि योजना को देखकर आँकी जा सकती है। विषय-वस्तु को भी इसमें सम्मिलित किया जाता है। भारतीय काव्यशास्त्र में अलंकार और अलंकार्य (शब्द और अर्थ) के बीच में अभेद की स्वीकृति इसी तत्त्व का समर्थन करती है । क्रोचे का अभिव्यंजनावाद भी लगभग इसी विचार का अनुगमन करता है । शब्द और अर्थ के बीच सम्बन्ध आदि विषय को लेकर भारतीय और पाश्चात्य, दोनों काव्यधाराओं के मर्मज्ञों के बीच काफी मीमांसा हुई है । उस विवाद में न पड़कर यहाँ हम मात्र इतना कहना चाहते हैं कि कवि की अनुभूति काव्य के अभिव्यंजना शिल्प को बेहद प्रभावित करती है । यदि वह किसी वासना से पीड़ित है तो उसके प्रतीक, उपमान, छन्द आदि उस वासना को निश्चित ही अभिव्यक्त करेंगे, भाषा ऊलजलूल होगी और यदि वह पवित्र आध्यात्मिकता की अनुभूति से सराबोर है तो उसके काव्य का हर शब्द उसी अनुभूति को उड़ेलता हुआ नज़र आएगा। 'मूकमाटी' पारम्परिक छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद या नयी कविता जैसी किसी ऐसी विधा से सम्बद्ध नहीं है जिसमें घनघोर सांसारिकता और अतृप्त वासना की कायरता जड़ी हुई हो । वह तो ऐसे कवि की महाकृति है जो वीतरागता के पथ पर काफ़ी दूर तक चल पड़ा है और उसके पवित्र आचरण की सुगन्ध से आकर्षित होकर एक बहुत बड़ा समुदाय अनुगामी बन गया है । इसलिए प्रस्तुत महाकाव्य में न खण्डित व्यक्तित्व दिखाई देगा और न कहीं बोधशून्यता लक्षित होगी । उसके सारे प्रतीक, उपमान, बिम्ब, प्रतिबिम्ब एक नए शिल्प को लेकर पवित्रता का वातावरण खड़ा कर देते हैं जिसमें पाठक अपने को स्थापित कर अपूर्व आनन्द का अनुभव करता है । कवि की शक्तिशाली परम अनुभूति उसके काव्य को लीक से हटकर दीपस्तम्भ के रूप में प्रस्थापित कर देती है जिसकी तुलना के लिए आधुनिक काव्य जगत् बिलकुल शून्य-सा दिखाई देता है। फिर भी यहाँ हम उसके अभिव्यंजना शिल्प पर विचार करते समय कुछ तुलनात्मक तथ्यों की ओर संकेत करने का प्रयत्न अवश्य करेंगे। महाकाव्यत्व 'मूकमाटी' में पारम्परिक महाकाव्य के लक्षणों को खोजना असामयिक होगा। हाँ, उसमें सामान्य लक्षण अवश्य देखे जा सकते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने विभिन्न महाकाव्यों की समीक्षा करने के बाद महाकाव्य के केवल चार तत्त्वों को अधिक महत्त्व दिया है- (१) इतिवृत्त, (२) वस्तु-व्यापार वर्णन, (३) भाव व्यंजना, (४) संवाद। विस्तार की दृष्टि से हम कह सकते हैं कि महाकाव्य के तीन आन्तरिक स्थायी तत्त्व हैं - (१) अन्वित महान् घटना, (२) महान् उद्देश्य, तथा (३) प्रभावान्विति या रसात्मकता । बाह्य लक्षणों में कथात्मकता, सर्गबद्धता, जीवन के
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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