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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 373 इन्हीं षष्ठविध प्रयोगों के माध्यम से सन्त कवि ने शब्द और अर्थ के विलक्षण सम्बन्ध अभिव्यक्त करने का प्रयत्न किया है । शब्द के इन प्रयोगों में आचार्यश्री ने विलोमार्थक प्रयोग के माध्यम से अपनी अभिप्रेत अर्थाभिव्यक्ति पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया है। विलोमार्थक शब्द प्रयोग 'मूकमाटी' के चारों खण्डों में यत्र-तत्र देखे जा सकते हैं। शब्द के विखण्डन प्रयोगों की भी प्रसंगानुकूल अभिव्यक्ति प्रचुर रूप से की गई। परन्तु, शब्द प्रयोगों में कतिपय दोष भी आ गए हैं- यथा : शब्द का अनावश्यक प्रयोग- ही, और, बेटा, समझी बात । शब्द का अनुपयुक्त प्रयोग- सर्वनामों रूप- इसको, इसे आदि । शब्द का व्याकरण सम्मत प्रयोग न होना- लिंग, वचन, कर्ता, क्रिया सम्बन्धी दोष । शब्द का यथोचित सह-प्रयोग न होना- तत्सम, देशज, विदेशी। शब्द का बलात् प्रयोग- यशा। शब्द का अनुपयुक्त प्रयोग-समझी बात । इस कारण रस भंग तो हुआ ही है, काव्य धारा के प्रवाह में बाधा भी खड़ी हुई है। कुछ प्रयोग यहाँ द्रष्टव्य हैं : “सीमातीत शून्य में/नीलिमा बिछाई, और "इधर "नीचे/निरी नीरवता छाई।" (पृ. १) उपर्युक्त उदाहरण में बिछाई' क्रिया भूतकालिक है । यदि बिछाई की जगह 'बिछी हुई है' एवं 'और इधर नीचे/निरी नीरवता छाई' के साथ 'है' इस सहायक क्रिया का प्रयोग किया जाता तो अधिक उपयुक्त होता। इसी पृष्ठ पर 'अवसान'का विपर्यय 'शान' का प्रयोग उपयुक्त नहीं है। 'शान' के स्थान पर 'अभ्युत्थान' या 'वरदान' शब्द के प्रयोग से हो रहा है। इसमें क्रिया की 'तुक' भी मिल जाती, यथा- 'निशा का अवसान हो रहा है/ उषा का अभ्युत्थान हो रहा है।' इसी तरह 'मुख पर अंचल ले कर' (पृ. १) की जगह अंचल में मुख छिपाये' कहीं अधिक उपयुक्त है। अपनी पराग' (पृ.२) के स्थान पर अपने पराग को' होना चाहिए। इसकी पीड़ा अव्यक्ता है' (पृ. ४) में इसकी' की जगह 'मम' या 'मेरी' सर्वनाम का प्रयोग होना चाहिए । इसी पृष्ठ पर 'पराक्रम से रीता/ विपरीता है इसकी भाग्य रेखा' में रीता' क्रिया के स्थान 'रिक्ता' रखा जाता। रीता' की तुक में 'विपरीता विशेषण ‘भाग्य रेखा' के साथ सही नहीं बैठता, क्योंकि भाग्य रेखा स्त्रीलिंग है, अतएव स्त्रीलिंग में ही क्रिया आएगी। यहाँ पर भी 'इसकी' के स्थान पर 'मेरी' का प्रयोग होना चाहिए, क्योंकि माँ धरती के सम्मुख सरिता तट की माटी स्वयं ही कथन कर रही है, इसलिए प्रथम पुरुष सर्वनाम ही आएँगे, यथा : "मेरी पीड़ा अव्यक्ता है/व्यक्त किसके सम्मुख करूँ ! क्रम हीना हूँ/पराक्रम से रिक्ता/विपरीत है मेरी भाग्यरेखा।" 'इसे' - 'इसको' की जगह 'मुझे'- 'मेरा' सर्वनाम प्रयुक्त होना चाहिए। इसी प्रकार अनगित' (पृ.५) नहीं, 'अनगिनत' शब्द सही है । सम्बोधन 'बेटा' (पृ.७) की जगह 'बेटी' होना चाहिए। 'समझी बात'(पृ. ८) अनावश्यक ____ इसी पृष्ठ पर संगति का प्रभाव दर्शाने वाली पंक्तियों, क्रियाओं का प्रयोग गड़बड़ा गया है-जैसे 'गिरती' के स्थान पर 'गिरकर' प्रयोग होना चाहिए था। 'बेटा' का अधिक प्रयोग काव्य के सहज प्रवाह में बाधा पहुंचाता है। एकाध बार प्रयोग ही ठीक होता । फिर 'इससे यही फलित हुआ' (पृ.१४) ऐसी समझाइश और निष्कर्षात्मक शैली के
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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