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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 249 छद्म इसकी कल्पना, पाषण्ड इसका ज्ञान/यह मनुष्य मनुष्यता का घोरतम अपमान!" ० "इससे बढ़कर मनुज-वंश का/और पतन क्या होगा? मानवीय गौरव का बोलो,/और हनन क्या होगा ?” (कुरुक्षेत्र : दिनकर) 'मूकमाटी' समकालीन संस्कृति, धर्म, दर्शन, समाज, राजनीति, अर्थनीति का दर्पण बन गया है। मानव समाज में व्याप्त धन-लोलुपता ने पवित्र बन्धनों को भी व्यावसायिक अनुबन्ध बना दिया है । जीवन, आज जीवन ही नहीं, व्यापार बन गया है, यथा : "...खेद है कि/लोभी पापी मानव/पाणिग्रहण को भी प्राण-ग्रहण का रूप देते हैं।/प्राय: अनुचित रूप से/सेवकों से सेवा लेते और/वेतन का वितरण भी अनुचित ही।/ये अपने को बताते मनु की सन्तान !/महामना मानव !/देने का नाम सुनते ही इनके उदार हाथों में/पक्षाघात के लक्षण दिखने लगते हैं, फिर भी, एकाध बूंद के रूप में/जो कुछ दिया जाता या देना पड़ता/वह दुर्भावना के साथ ही।/जिसे पाने वाले पचा न पाते सही अन्यथा/हमारा रुधिर लाल होकर भी/इतना दुर्गन्ध क्यों ?" (पृ. ३८६-३८७) अनेकान्त दर्शन को स्याद्वादमयी शैली में अपनाने से सम्पूर्ण संसार में लोकतन्त्र की जड़ें मजबूत होगी और विश्व शान्ति तथा विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा, जिससे विश्वविजयिनी मानवता की प्रतिष्ठा होगी। सन्त-कवि ने लोकतन्त्रात्मक भावना निम्नांकित पंक्तियों में व्यक्त की है : - "लोक में लोकतन्त्र का नीड़/तब तक सुरक्षित रहेगा जब तक 'भी' श्वास लेता रहेगा।" (पृ. १७३) - "हम भी हैं/तुम भी हो/सब कुछ !" (पृ. १७२-१७३) सच्चे लोकतन्त्र का यही प्रतीक है। 'मूकमाटी कार के अनुसार आज वर्तमान गणतन्त्रीय न्याय-व्यवस्था एक दिखावा बन गई है। न्याय की लम्बी प्रक्रिया, कानून का अन्धा होना, रिश्वतखोरी और अर्थ की प्रभुता के कारण अपराध प्रवृत्ति कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है, क्योंकि : 0 “प्राय: अपराधी-जन बच जाते/निरपराध ही पिट जाते, और उन्हें/पीटते-पीटते टूटती हम। इसे हम गणतन्त्र कैसे कहें ?/यह तो शुद्ध 'धन-तन्त्र' है/या मनमाना 'तन्त्र' है !" (पृ. २७१) "आशातीत विलम्ब के कारण/अन्याय न्याय-सा नहीं न्याय अन्याय-सा लगता ही है । और यही हुआ इस युग में इस के साथ।" (पृ. २७२)
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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