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________________ 242 :: मूकमाटी-मीमांसा तुम न रमो तो मन तुममें रमा करे।" __भारतीय संस्कृति-आर्य संस्कृति की विजय स्थापित करना प्रत्येक कवि का कर्म रहा है । असत् पर सत् की विजय ही कवि का अभिप्रेत रहता है । गुप्तजी ने 'साकेत' में आर्य-संस्कृति का आदर्श निम्न पंक्तियों में अभिव्यक्त किया है : "मैं आर्यों का आदर्श बताने आया, जन सम्मुख धन को तुच्छ जताने आया। सुख शान्ति हेतु मैं क्रान्ति मचाने आया, विश्वासी का विश्वास बचाने आया। मैं आया उनके हेतु कि जो तापित हैं जो विवश, विकल, बलहीन, दीन शापित हैं।" 'मूकमाटी'कार ने सुख-शान्ति की जननी भारतीय संस्कृति की ओर संकेत करते हुए लिखा है : 0 "महामना जिस ओर/अभिनिष्क्रमण कर गये/सब कुछ तज कर, वन गये नग्न, अपने में मग्न बन गये/उसी ओर . उन्हीं की अनुक्रम निर्देशिका भारतीय संस्कृति है सुख-शान्ति की प्रवेशिका है।" (पृ. १०२-१०३) "'ही' पश्चिमी-सभ्यता है/'भी' है भारतीय संस्कृति, भाग्य-विधाता रावण था 'ही' का उपासक/राम के भीतर 'भी' बैठा था। यही कारण कि/राम उपास्य हुए, हैं, रहेंगे आगे भी।" (पृ. १७३) " 'भी' के आस-पास/बढ़ती-सी भीड़ लगती अवश्य, किन्तु भीड़ नहीं,/'भी' लोकतन्त्र की रीढ़ है।" (पृ. १७३) 'सत्यमेव जयते' साहित्य का सत्य है । इस सत्य का उद्घाटन एवं सम्पोषण कवि का अभिप्रेत होता है । यही सत्य जीवन का सत्य बनकर, जीवन को सार्थकता प्रदान करता है । महाकाव्यों में सत्य की मीमांसा की गई है : "सत्य से ही स्थिर है संसार,/सत्य ही सब धर्मों का सार ! राज्य ही नहीं, प्राण-परिवार,/सत्य पर सकता हूँ सब बार।" (साकेत : गुप्त) "Truth is God."- सत्य ही ईश्वर है । असत् का ज्ञान और उससे छुटकारा पाना ही सत्य की पहचान और प्राप्ति है । 'मूकमाटी'कार ने इसी सत्य की व्याख्या की है : "असत्य की सही पहचान ही/सत्य का अवधान है।" (पृ. ९) ० "दया का होना ही/जीव-विज्ञान का/सम्यक् परिचय है ।" (पृ. ३७) 0 “अधिकार का भाव आना/सम्प्रेषण का दुरुपयोग है ।" (पृ. २३) “सहकार का भाव आना/सदुपयोग है, सार्थक है।" (पृ. २३) 0 "अनुकूलता की प्रतीक्षा करना/सही पुरुषार्थ नहीं है।" (पृ. १३)
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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