SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 216 :: मूकमाटी-मीमांसा क्या सत्य शासित होगा ?/हाय रे जौहरी के हाट में आज हीरक-हार की हार!/हाय रे, काँच की चकाचौंध में/मरी जा रहीहीरे की झगझगाहट !/अब/सती अनुचरी हो चलेगी व्यभिचारिणी के पीछे-पीछे।” (पृ. ४६९-४७०) कुम्भ की अग्नि परीक्षा या तपस्या से प्रभावित होकर जल देवता ने विक्रिया ऋद्धि से परिवार के चारों ओर रक्षामण्डल (भामण्डल) की सृष्टि कर डाली । इस पर भी आतंकवादी दल न माना और उसने परिवार को समूल नष्ट करने हेतु एक पाश फेंका। किन्तु उस पाश को प्रलय रूपधारी पवन ने उड़ा दिया। इस पर भी उसने अपनी हार नहीं मानी । उपसर्ग, आतंक के बाद भी वह धमकियों और हुँकारों से वातावरण को गुंजायमान करता रहा । यदि प्राकृतिक उपादान सेठ के मनोबल को न बढ़ाते तो कुम्भ के साथ ही सेठ को आतंक दल समाप्त कर देता। कवि की मान्यता है कि जब तक आतंकवाद जीवित है, शान्ति की साँस लेना कठिन है : "जब तक जीवित है आतंकवाद/शान्ति का श्वास ले नहीं सकती धरती यह,/ये आँखें अब/आतंकवाद को देख नहीं सकती,/ये कान अब आतंक का नाम सुन नहीं सकते,/यह जीवन भी कृत-संकल्पित है कि उसका रहे या इसका/यहाँ अस्तित्व एक का रहेगा।" (पृ. ४४१) अन्तरिक्ष युद्ध (स्टार वार) की परिकल्पना कवि श्री विद्यासागरजी केवल आध्यात्मिक जगत् तक ही सीमित नहीं हैं, अत्याधुनिक विज्ञान जगत् से भी उनका परिचय है । आज के आणविक युग में युद्ध की कल्पना ही हमारे मानस को झकझोर देती है । अब तक जो विश्वयुद्ध हुए हैं, उनसे कितना विनाश हुआ है, उसे सभी जानते हैं। ये युद्ध पृथ्वी के युद्ध थे किन्तु अब तो अन्तरिक्ष युद्ध की बातें जब भी यदा-कदा होती हैं तो उनसे सम्पूर्ण मानवता के विनाश का चित्र हमारी आँखों के सामने आ जाता है। विश्व की दो महाशक्तियाँ अमेरिका और सोवियत संघ न जाने कितने प्रक्षेपास्त्र अन्तरिक्ष में छोड़ चुके हैं। परस्पर की होड़ के कारण दोनों ने अरबों-खरबों रुपए इनके निर्माण पर व्यर्थ ही व्यय कर दिए हैं। सोवियत संघ तो अब विघटित हो चुका है इसलिए अन्तरिक्ष युद्ध की भावना से विश्व एक बार उबर चुका है। अमेरिका तो 'स्टार वार' के स्वप्न देख ही रहा था । कविश्री ने उपल वर्षा का जो बिम्बात्मक वर्णन किया है, उसे देखिए : " लघु-गुरु अणु-महा/त्रिकोण-चतुष्कोण वाले/तथा पाँच पहलू वाले भिन्न-भिन्न आकार वाले/भिन्न-भिन्न भार वाले गोल-गोल सुडौल ओले/क्या कहे, क्या बोले, जहाँ देखो वहाँ ओले/सौर-मण्डल भर गया !" (पृ. २४८) जब ऊपर से ओलावृष्टि हुई तो नीचे के भूकणों ने सोचा कि ये तो हमें नष्ट कर देंगे, इसलिए प्रतिकार स्वरूप भूकणों ने ओलों को अपनी पूरी शक्ति से टक्कर देकर उछालना आरम्भ कर दिया, जिस प्रकार प्रक्षेपास्त्र (राकेट) उपग्रहों को अन्तरिक्ष में उछाल देता है। प्रक्षेपास्त्रों और उपग्रहों के विषय में जानकारी हुए बिना ऐसी अभिव्यक्ति कहाँ सम्भव थी : "प्रतिकार के रूप में/अपने बल का परिचय देते मस्तक के बल भू-कणों ने भी/ओलों को टक्कर देकर
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy