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________________ 214 :: मूकमाटी-मीमांसा दिया था और भारतवासियों को कर्मशील बनने के लिए आह्वान किया था। किन्तु भारतवासी कर्म के स्थान पर फल को महत्त्व देने लगे और कर्म-सन्देश को भूल गए, जो चिन्ता का विषय है । उन्होंने तो कहा था : "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतु भू र्मा संगस्तुकर्मिणि ॥" कवि श्री विद्यासागरजी ने कर्महीन मनुष्य की भर्त्सना की है और कहा है कि कर्महीन के लाल कपोल का स्पर्श शृगाल भी नहीं करना चाहेगा : "श्रम करे सो श्रमण !/ऐसे कर्म-हीन कंगाल के/लाल-लाल गाल को पागल से पागल शृगाल भी/खाने की बात तो दूर रही, छूना भी नहीं चाहेगा।” (पृ. ३६२) इस घोर कलिकाल में आज अधिकांश मनुष्य कर्म से पराङ्मुख होकर जघन्य कार्यों में व्यस्त हो गए हैं। हत्या, अपहरण, डकैती, फिरौती, लूटपाट, धोखाधड़ी, रिश्वत, कमीशन आदि में फँस कर आज वे अपने वास्तविक कर्म को छोड़ बैठे हैं। उन्होंने श्रम की महत्ता को भुला दिया है और श्रमशीलों तथा ईमानदारों का उपहास उड़ाना प्रारम्भ कर दिया है। लखपति और करोड़पति बनने की बलवती स्पृहा ने उन्हें अपराधों में लिप्त कर दिया है। नैतिकता नाम की किसी वस्तु का मूल्य रह नहीं गया है । आज वही बड़ा है जो बेईमानी, तस्करी के धन्धों में धन कमा रहा है और आलीशान बंगलों में रह रहा है। कविश्री की मान्यता है कि आज राम जैसे श्रमशीलों की अति आवश्यकता है जो अपहरण, अन्याय और अत्याचार करने-कराने वालों के अधिपति लंकापति रावण जैसों का वध करें और त्राहि-त्राहि करती हुई जनता की रक्षा करें: "भवभीत हुए बिना/श्रमण का भेष धारण कर,/अभय का हाथ उठा कर, शरणागत को आशीष देने की अपेक्षा,/अन्याय मार्ग का अनुसरण करने वाले रावण जैसे शत्रुओं पर/रणांगण में कूदकर/राम जैसे श्रम-शीलों का हाथ उठाना ही/कलियुग में सत्-युग ला सकता है, धरती पर "यहीं पर/स्वर्ग को उतार सकता है।” (पृ. ३६१-३६२) आतंकवादी विचारधारा का घोर विरोध "अहिंसा परमो धर्मः यतो धर्मः ततो जयः' में विश्वास रखने वाले, अहिंसामयी धर्म की ध्वजा को दिग्दिगन्त में फहराने वाले कवि श्री विद्यासागरजी की दृष्टि से वह भयंकर आतंकवाद भी नहीं बच पाया है जिसने आज भारत वर्ष के जन-जन को आतंकित किया हुआ है। उसने असंख्य माताओं से उनके लाड़ले पुत्र, ललनाओं से उनके सुहाग ही नहीं छीने हैं, निर्दोष लोगों के प्राण भी लिए हैं। पंजाब तो पिछले दूसरे दशक में इस आतंकवाद की भीषण चपेट में था। वहाँ पर प्रतिदिन की जन हत्याओं ने मनुष्य के मानस को उद्वेलित कर रखा था। हिंसा का ताण्डव नृत्य नित्य प्रति होता रहता था और भविष्य में भी इसके समाप्त होने के लक्षण नहीं दिखाई दे रहे थे। देश के अन्य प्रान्तों में भी यह फैलता जा रहा है। असम और जम्मू कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, जिनसे सर्वत्र समाज में असुरक्षा की भावना फैल रही है।
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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