SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 22:: मूकमाटी-मीमांसा होता है। कथा के इस सूत्र को संवाद और आगे बढ़ाते हैं । इस शब्दबद्ध कथा की पौध में बोध का सुगन्धित पुष्प है और वह पुष्प भी शोध की सरस फलमयी परिणति तक पहुँचता है। इस कथा में कुम्भ जलमय पाप का तपन द्वारा प्रक्षालन करता है और पुण्य का अर्जन करता है । सत्पात्र कुम्भ सेठ के जिन करों से ऊपर उठा लिया जाता है, श्रमण के चरणों में समर्पण के निमित्त उसके साथ 'की बातचीत चलती है और परस्पर एक-दूसरे की प्रशंसा करते हैं। बाद में कुम्भ सेठ को भी सम्बोधित करता है और बताता है : कुम्भ सेठ को प्रतीत होता है : 66 'सन्त समागम की यही तो सार्थकता है संसार का अन्त दिखने लगता है ।" (पृ. ३५२) “कुम्भ के विमल-दर्पण में / सन्त का अवतार हुआ है / और कुम्भ के निखिल अर्पण में / सन्त का आभार हुआ है।” (पृ. ३५४-३५५) कथाकार धातुनिर्मित बहुमूल्य कलशियों के अनुपयोग में सेठ की अवमानना व्यक्त कर उनमें कुम्भ के प्रति आक्रोश व्यक्त करवाता है । मानों पूँजीवाद का प्रतीक बनाकर गैर पूँजीवादी सात्त्विक शक्तियों और साधकों के साम्प्रतिक ताण्डव का उपस्थापन करना चाहता है । पर अन्तत: ये विरोधी ताकतें परास्त होती हैं और सेठ की आस्था कुम्भ प्रति यथावत् रहती है । परिपक्व कुम्भ भी समर्पित सेठ और उसके परिवार के उद्धार का संकल्प लेता है और सम्भाव आतंकवादी आक्रमण से बचाने के लिए कहता है : " तुरन्त परिवार सहित / यहाँ से निकलना है, विलम्ब घातक हो सकता है।” (पृ. ४२२) परिवार 'कुम्भ 'के नेतृत्व में चल पड़ता है और त्रस्त प्राणी साथ हो लेते हैं । अन्तत: आतंकवाद भी परास्त होता है । साधकों के समक्ष संघर्ष का अन्त नहीं है, पर तीर्थंकर का नेतृत्व रहे और अनुगामी का उनमें विश्वास - तो कोई विपत्ति उन्हें डुबो नहीं सकती । गर्भसन्धि में साधक पर नदी का आक्रोश बाधक बनता है और लगता है कि तीर्थयात्री अब गएतब गए, परन्तु 'विमर्श' चलता रहता है और अन्तत: 'निर्वहण' हो जाता है। नदी प्रतीक है- साधना यात्रा में विघ्न राशि का । उपासक सेठ परिवार की सम्भावित चिन्ता से सिद्ध कुम्भ नदी को ललकारता है : "अरी निम्नगे निम्न - अघे ! / इस गागर में सागर को भी धारण करने क्षमता है/ धरणी के अंश जो रहे हम !" (पृ. ४५३) इसी बीच कुम्भ को महामत्स्य से एक ऐसी मुक्तामणि मिलती है जो अगाध जल से भी धारक को पार कर देती है । सपरिवार सेठ को पार ले जाने वाले कुम्भ के आत्मविश्वास से बाधक नदी में भी समर्पण का भाव आ गया। लगा जैसे गन्तव्य ही अपनी ओर आ रहा है । यह तप, त्याग और सश्रद्ध साधना का ही प्रतिफल है कि आतंकवादी का भी स्वर मन्द हो जाता है । वह भी नदी से प्रार्थना करता है : “ओ माँ ! जलदेवता !/ हमें यह दे बता / अपराधी को भी क्यापार लगाती है ? / पुण्यात्मा का पालन-पोषण / उचित है कर्तव्य है,
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy