SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 471
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जाणणो। साचो हुवै तो ग्यानी जाणै, पिण छद्मस्थ रा ववहार में झूठो जाणणो। एक दोष सूं बीजो भेळो करै ते अन्याइ छै। जिण रा परिणाम मेला होसी, ते साध आर्यां रा छिद्र जोय-जोय नै भेळा करसी, ते तो भारीकर्मां जीवां रा काम छै। डाहो सरल आत्मा रो धणी होसी ते तो इम कहसी-कोई ग्रहस्थ साध-साधवियां रो सभाव प्रकृति अथवा दोष(कोइ ग्रहस्थ) कहै, बतावै, जिण नै सूं कहिणो-मौ ने क्यानें कहो, कहो तो धणी नै कहो, कै स्वामी जी नै कहो, जो यां नै प्राछित देने सुद्ध करै, नही कहिसो तो थे पिण दोषीला गुरां रा सेवणहार छो। जो स्वामी जो नै नहीं कहिसो तो था में पिण बांक छै। थे म्हानें कह्यां काइ हुवै यूं कहि नै न्यारो हुवै पिण आप बैहिदा माहै क्यानै परै। पेला रा दोष धार नैं भेळा करै ते तो एकंत मृषावादी अन्याइ छ। १३. किण ही नै खेत्र काचो बतायां, किण ही नै कपड़ादिक मोटो दीधां, इत्यादिक कारणै कषाय उठै, जद गुरवादिक री निंद्या करण रा, अवर्णवाद बोलणरा, एक एक आगै बोलण रा, माहोमां मिल नै जिलो बांधण रा, त्याग छै। अनंता सिद्धां री आण छै। गुरवादिक आगै भेळो तो आप रे मुतलब रहै, पछै आहारादिक थोड़ा घणां रो, कपड़ादिक रो, नाम लेइ नै अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। __ इण सरधा रा भायां रै कपड़ा रा ठिकाणा छै, बिना आग्या जाचण रा त्याग छै। नैड़ा दस बीस कोसां तांइ कपड़ो जाचै चोमासो उतरीयां, तो बड़ा आगै आण मेलणो, आप रे मते वावरणो नाही, वावरै तो सगळा कपड़ा मांहिलो ठलको हुवै ते वावरणो, पिण महीं वावरणो नही। जो अळगा हुवै गुरआदिक, तो माहोंमां सरीखो बरोबर बांट लेणो इधिको चाहीजै जिण नै परतो देणो। डाहा हुवै ते विचार जोयजो। १५. लूखे खेत्र तो उपकार हुवै ते छोड़ नै न रहै, आछै खेतर उपकार न हुवै तो ही पर रहै, ते यूं करणो नहीं। चौमासो तो अवसर देखै तो रहिणो, पिण शेष काळ तो रहिणो। किण री खावा-पीवादिक री संका परै तो उण नै साध कहै, बड़ा कहै ज्यूं करणो। दोय जणा तो विचरै, नैं आछा-आछा मोटा-मोटा साताकारिया खेत्र लोळपी थका जोवता फिरै, गुर राखै तछै न रहै, इम करणो नहीं छै। घणा भेळा रहितो दुखी, दोय जणा में सुखी, लोळपी थको यूं करणो नही छै। १६. आप किण ही नै परत पाना उपगरण देवै, ते तो आगाइज देणा, पिण न्यारो हुवै जद पाछा मांगण रा त्याग छै। जिण री आसंग हुवै ते देजो। १७. आर्या सूं देवो लेवो लिगार मातर करणो नही, बड़ा री आग्या बिना आगै आर्यां हुवै जठै जाणो नहीं। जावै तो एक रात्रि रहिणो, पिण अधिको रहिणो नहीं। कारण पड़ियां रहै तो गोचरी ना घर बांट लेणा, पिण नित रो नित पूछणों नहीं। कनैं वैसण देणी नहीं। ऊभी रहिण देणी नहीं। चरचा बात करणी नहीं। बड़ा गुरवादिक रा १. मोटा। २. सामान्य। परिशिष्ट : लिखता री जोड़: ४४५
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy