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________________ माह्यो । ताह्यो । ५६३ नरक निगोद ना दुख सूं धडक्यो, तिण सूं चारित्र लेई हरख्यो । संवत उगणीसै तेवीसै वास, माह सुद बीज उजास ॥ ५६४ इम बीजै अवनीत नवी दिख्या लीधी, तेजसी कनै प्रसिद्धी । पछै विहार करी आया गणपति पायो, देश थली रे ५६५ तीजो अविनीत पिण साथै आयो, गणपति पासै बीजो अविनीत आत्म निज निंदै, पूर्व पाप ५६६ सइकडां लोक सुणंता तांम, करै शासण रा गुण ग्रांम | हु विधि दोष बताया, मोह ५६७ गण बारै नीकळ डूबण रो पंथ लीधो, मोटो म्हे गण बारै निकळिया ताह्यो, पिण हूं संजम निकंदै ॥ कर्म उलझाया ॥ अकार्य कीधो । सरधत नाह्यो । ५६८ टाळोकर में नहीं चरण रो खेरो, इम बोलै वचन सुमेरो । भाग्य जोगै मोनै तेजसी मिलियो, तिण सूं मन रो मनोरथ फळियो ॥ अन्य मार्ग नी गाथा हरिदास नै हरि मिल्या रे, आडै खावण दधी मोठ बाजरी, दूध रस पीवण नै लजा हर राख आडै गेलै दीयो आय । चित ल्याय ॥ ज्यूं तेज ऋषी मुझनै मिल्या रे, मुंह मांग्या पासा ढळ्याजी, चरण चरण जुग गणपति नाजी, हूंतो वांदू बे कर जोड़ || ५६९ २इम विविध प्रकार शासण नै दिढावै, बहु लोक सुणी हुलसावै । तीजा अवनीत भणी इम ताह्यो, जय गणि बोल्या वायो || ५७० तूं अधिक अविनीत तणी दिल धार, जो तिण दिस कियो विहार । तो शासण मांहि लेवा रा जाण, जावजीव पचखांण ॥ ५७१ मुझ पट्ट ए मघराज महा भाग्य, जावजीव तिण रै पिण त्याग । गिंवार नै जिम चरण न देवां, तिम तोनै पिण मांहि न लेवां ॥ ५७२ जब तीजै अविनीत हीया बीचतोली, गांठ अभ्यंतर खोली । दिन सारो, बोल्यो गणपति नै तिण वारो ॥ मोड, बोल्यो गणपति कर जोड़ । शिख्या, दीजै मोनै दीक्षा ॥ विद पक्ष चैत तेरस ५७३ आर्जियांनै वंदणा करी मान अमोलक सखरी चरण १. लय- दलाली लालन की... २. लय - पुन्यवंतो जीव पाछल भव...... आय । गाय ॥ लेही ॥ लघु रास : ४१७
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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