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________________ २१२ इम लेवा री आज्ञा नाहि, बले बोल न छोड़णो काइ। बोल छोडी नै संतां नै ताहि, लेवा री आज्ञा नाहि। २१३ आत्म रो यारै करणो कल्याण, तो गण माहै लैणा जाण॥ आत्म कल्याण जो करणो नाहि तो औ जासी यांरी कमाई।। २१४ किण रै गरज है इम लिखि पाने, गुरु सीखाया दिया श्रावकां नै। ए कागद सुण नै ढीला पड़िया, मरम टळ्यां रा गळिया। २१५ जद एक विनीत श्रावक नै ताहि, यां घाल्यो विष्टाळा' मांहि । ते श्रावक कहै साधां पे आय, मोनै टाळोकर कही वाय।। २१६ बोल-चाल री तो म्हारै न कांइ, दोय कहै म्हांनै लेवो मांही। नवी खेचल म्हांनै नहीं देवै, खातरी रा अक्षर लिखीया जिवार। २१७ सिंघाडा री नै बोल री न कोय, नवी खेचल नही दै मोय। जब सुद्ध परिणाम जाण्या तिणवार, साघां अक्षर लिखण कहिवै।। २१८ लिखंता बले बोल्यो करी नरमाय, इम म्हारी आछी लागै ताय । अरज स्वामीजी सूं करनै ताय, बोल-चाल री देसी मिटाय ।। २१९ घणी नरमाइ करिनै एहवा, अक्षर लिखीया तैहवा। खेचल आश्री बोल ए ताम, साधां तो लिख्यो इण परिणाम।। २२० बोल छोड़ लेवा री आज्ञा नाहि, समाचार गुरां रा पहिलाइ। त्यां बोलां री मांनै किम संत, तिण सूं खेचल रा बोल मानंत। २२१ स्वामीजी जिको देसी तिको दंड, अंगीगार म्हे करसां अखंड । इण विध दंड धारी नै सोय, आयो पहिलो पंचमो दोय॥ २२२ दूजी वार निकळीयां नै हुआ छमास, जद गण मांहि आया तास। भाद्रवा विद तेरस तिथि ताहि, आया दोनूं जणा गण मांहि ।। २२३ टोळा रा साधु साधवी सुवंस, त्यारै दंड ठहरायो न अंस। उळटो आपरै दंड ठहराय, इण विध आया गण मांय॥ २२४ ढीला ज्यांनै कह्या गण मांही, त्यारै दंड ठहरायो न कांइ। गण मांहि दोष कहिता था अथायो, तिण रो दंड किंचित् न छैहरायो॥ २२५ दोष कहिता गुरु प्रमुख मांही, तिण रो दंड ठैहरायो नाहि। दोष कहीनै निकळीया बार, कियो दंड पोते अंगीकार।। २२६ बलि जो दोष कहै बीजी बार, तो मै पूरा मूढ गिंवार। ज्यां माहै दोष कह्या था थूल, तिण रो दंड न ठहरायो मूळ।। १. प्रपंच ३. तकलीफ। २. चतुर्भुज जी छोगजी (लघु) ४.बड़े-बड़े। ३८८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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