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________________ १८२ तिण तूं एहवा दीसै परिणाम, निश्चै तो ग्यानी जाणै ताम। बिगड़ायल जै जैन रा पूरा, पड़िया च्यार तीर्थ सूं दूरा॥ १८३ लाज सर्म त्यां अलगी मेळी, भेखधारी भागल त्यांरा बेली। साधां में जै बहु दोष बतावै, भेखधास्यां रै मन भावै॥ १८४ ठंढी कीधी भेखधास्यां री छाती, औ पिण हुआ त्यांरा पखपाती। नींव असाता वेदना री दीधी, भेखधारयां रै खरची कीधी।। १८५ पिण इण खरची सूं होसी खुराब, जासी भव-भव मांहै आब । भेखधारी तो आगैइ देता था आळ, ते झूठ रो क्यानै कालै निकाळ॥ १८६ ओ तो सहजेइ पड़यो झूठ पार्ने, हिवै जै क्यांनै राखै छानै । भेखधास्यां रा श्रावक आवै, त्यांसूं तो घणां मिल जावै ।। १८७ मीठे वचन करि त्यांनै बोलावै, गुरु माहै दोष बतावै। औ पिण यां सूं राजी होय जावै, असणादिक आछी रीत बहिरावै॥ १८८ बले # पिण यांनै पोगां चढावै, वारंवार अवगुण बोलावै। किण नै कहै म्हांमै आसी उदार, किण नै कहै आसी मुनि च्यार॥ १८९ किण नै कहै आसी संत तेर, किण नै कहै. आसी तीन फेर। किण नै कहै आर्या रो सिंघाडो एक, म्हारो थको छै विशेष॥ १९० बहु विध एक करै बकरोल, मोह कर्म थी किलोल। लोकां साधां नै कह्या आय, जै तो बोले इण विध वाय ।। १९१ ऋषि हरखचंद नै आसाढ मंझार, मिल्यो अधिक अविनीत तिवार॥ हरख कहै थे आ कांइ कीधी, जद यां कह्यो होणहार सीधीं। १९२ वीर छद्मस्थ गोसाळा नै सीस, कीधो तो म्हारो कांइ जगीस। म्हे तो या जांणी नहीं थी कांइ, गण बाहिर रहिसां ताहि ।। १९३ छोगजी लारा सूं आय ले जासी, ते पिण ना या विमासी। स्वामीजी पिण मुनि मेल्या न कोइ, घणी वाट नागोर में जोइ॥ १९४ पछै तो घणी खंच मै जाणी, बात पड़ी पहिछाणी। हरख कह्यो अबैइ ताय, पड़ो स्वामीजी रै पाय॥ १९५ जद को बोल पंच चिहुं तथा दोय, छोड्यां गण में आवणो होय। जब हरख कह्यो बोल एक पिण ज्यांही, छूटतौ दीसै नांही॥ १९६ कह्यो बोल छूटां विण गण मांहि, सर्वथा आवां नाहीं। देश-देश लोकां में बात, प्रसिद्ध हुई विख्यात।। १. साथी। ३८६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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