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________________ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ परंपरा नां बोल दोष नहिं छै बुद्धिवंत न्याय कोइ बोल बैसे केवळियां नें जोय । होय ॥ सूत्र ववहार । बहु, गणि बुद्धिवंतरी थाप । तेहमें, जीत ववहार मिलाप ॥ आगम, श्रुत, आणा धारणा, जीत, पंचमो ए पंच ववहारे वर्त्ततां, श्रमण आराधक ठाणांग ठाणें पांच में, तथा भगवती अष्टम शतक में, अष्टमुद्देशे तिण सूं जीत ववहार में, दोष नहिं छै कोय । नीतिवान गणपति तणों, बांध्यो जीत सुध जोय ॥ सुध आलोची मुनि करे, असम्यक् पिण सम्यक् कहिवाय । आचारंग अध्ययनपंचमें, पंचम उद्देशे सार ॥ वाय ॥ भामाल गुणसठे वास । भाख्यो एम विमास ॥ युवराज पद, बत्तीसै भिक्षु पिण तं लिखत में, बोल सरधा चरचा तणों, काम पड़े किणवार । विचार नें, संचे बेसाणणो सार ॥ रंच । नहीं, त न करणी भोळावणो, अंश न करणी ढाळ १ तथा तिण मा १. ठाणं ५ ।१२४, २. ववहार, १० ६, ३. भगवई सतं ८ । ३०१ ४. आयारो ५।९६ दूहा तथा पैंतालीसा रा लिखत में कह्यो, कोइ श्रद्धा आचार रो बोल ताय । सूत्र रो अथवा कल्प रा, बोल तणीं मन मांय ॥ कदाच समझ पड़े नहीं, गुरू तथा भणणहार वाय । कतिको मानणौ कह्यो, नहि तो केवळियां नें देणो भळाय ॥ जोड़ किवाड़या तणीं, चौपनैं कीधी स्वाम पिण थापियो, जीत ववहार सुधाम ॥ ५. कभी ६. बुद्धिमान खंच ॥ पंरपरा नीं जोड़ : ढा० १: ३३१
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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