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________________ १० ए गामां नगरां रुलियाळ ज्यूं फिरती, साध साधवियां रा अवगुण गावै। झूठा-झूठा आळ साधां ने दैइ, काचा नै साधां सेती भिड़कावै ।। ११ जे हीण-पुनिया हीण-बुद्धि जीव छै, ते जाय बैससी भागळां रे पास। बलै अशुभ कर्म उदै आया छै, ते करसी भागळां रो विसवास ।। १२ ए झूठा-झूठा आळ देवे साधां रे, त्यां भागळां री कोइ मानसी बात। तिण रे पिण असुभ कर्म उदै आया है, यां री संगत किया सूं आवै मिथ्यात॥ १३ त्यां विकळां कनै करै सामाइ, त्यां विकळां कनै जाय सुणै वखांण। बलै हाव भाव करै त्यां विकळां सूं, त्यारै पका बूड़ण रा ए हीज एहलाण॥ १४ समदृष्टि नै यां रो संग न करणो, बलै न करणी यां तूं पीत । ए अनंत सिद्धां री आण करै तो ही, यां री तो मूळ न करणी प्रतीत॥ १५ अनंत सिद्धां री आंण तो घणी वार भांगी, त्यां विकलां री कुण राखसी प्रतीत। यां रा सूंस तणी परतीत राखै तो, ते पिण होसी घणां फजीत ।। १६ यां नै सैंदी जाण यां सूं भेळप राखै, यां सूं मिल नै करै कोइ बात। त्यां रे समकम रा पजवा पड़े हीणा, आवतो आवतो आवै मिथ्यात॥ १७ ज्यां रे साधां रा अवगुण बोलावणा होसी, ते तो विकळां ने जाय बतलावै। सेणा समदिष्टी श्रावक हुसी ते, त्यां विकळां कनै क्यां रे ताइ जावै।। १८ ए तो भागळ तूटळ भिष्ट होय बैठी, त्यां विकळां ने मूढे विकळ लगावै। ____ 'यां रा माजना' रा' या सूं प्रीत बांध नै, साध साधव्यां रा अवगुण बोलावे।। १९ बलै आछो-आछो आहार खावण रे कारण,भेषधारयां रा श्रावकां सूं मिल जावै। साधां सूं लड़ण आवै बाजार रे मांहि, भेषधास्यां रा श्रावकां नै साथे ल्यावै।। • २० जांणे साधां रा ओगुण बाजार में काढूं, तो राजी होय नै म्हांनै आछो वहरावे। पिण दोनूं बाजार में पड़ गया फीटा, जब मूंढो बिगाड़ नै पाछा जावै।। २१ जो या सरधा यांरा घट माहै हुवै तो, सरधा पमाइ छै त्यां रा गुण गावै। समकत रो माहै सींचो हुवै तो, त्यां रा अवगुण बोलणी किणविध आवै॥ २२ सुध साधां री वैरण होय बैठी, बलै भेषधास्यां सूं प्रीत बणावै। भेषधास्यां पिण यां नै जांण लीधी छ, तिण सूं ए पिण यां नै मूंढे न लगावै॥ २३ कहि कहि नै कितरोयक कहुं, यां रा चाळा नै चरित्र विविध प्रकार। पिण ए साधपणा लायक नही दीसै, तिण सूं काढ़ दीधी छै टोळा रे बार। २४ यां बिगड़ायला नै ओळखावण काजे, जोड़ कीधी खेरवा सेहर मझार। संवत् अठारे नै वर्श चोपने, सावण सुध सातम नै रविवार ।। १. उन जैसे ही। २. अंश। ३१८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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