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________________ २ गलियार गधो घोड़ो मोलवे, तो खाडेती घणो दुःख पावै। ज्यूं अवनीत नै दिख्या दियां, पछै पग-पग गुर पिछतावे ।। बुटकने गधेड़े दुराचारी, तिण कीधी घणी खोटाइ। आप छांदे रह्यो उजाड़ में, एक बळद नै कुबद सिखाइ ।। तिण अवनीत बळद नै तुरकियां, मार गाडा मांहि घाल्यो। बुटकना नै आय जोतस्यो, हिवै जाय उतावळो चाल्यो। ज्यूं अवनीत नै अवनीत मिल्यां, अवनीतपणो सीखावे। पछै बुटकनां नै बळद ज्यूं दोनूं जणा दुःख पावे।। इम इहां पिण कह्यो-अवनीत नै अवनीत री संगति सूं अविनीतपणो वधे, ते माटे अवनीत री संगत घणी खोटी। सूत्र में पिण अवनीत नै ठाम-ठाम ओळखायो छै। अवनीत नै उधो ही सूजे, उंधो ही अर्थ करै। १ 'केइ विनीत अवनीत भण्या दोनू गुर कने, पिण विनय सहित भणियो विनीत हो। भवि० तिण सूं सूधो इ सूजे नै सुधो इ अर्थ करै, भण-भण नै उधो पड़े अवनीत हो॥ श्री वीर कह्यो अविनीत नै अति बुरो॥ २ ते विनीत अवनीत मार्ग में जाता थकां, हथणी रो पग देखी तांम। अवनीत कहै हाथी गयो इण मारगो, उ बोल्यो निसंग पणे आंम॥ वनीत कहै हथणी पिण कांणी डावी आंख री, ऊपरराजा री रांणी सहित। बलै पुतर रत्न तिण री कूख में, विवरा सुध बोल्यो वनीत॥ ४ बलै आगै गयां बाई प्रश्न पूछियो, ते उभी सरवर पाळ। म्हारो पुत्र प्रदेश गयो मिलसी किण दिनै, जब अवनीत कहै कीधो उण काळ।। हूं काटूं रे बाढूं जीभड़ली तांहरी, तूं विरओ बोले केम॥ तूं धसको क्यूं न्हाखै रे पापी एहवो, जब विनीत बोलै छै एम। वनीत कहै पुत्र ताहरो घर आवियो, आज मिलसी तोसूं निसंक। ___ इण रो वचन 'म' माने झूठ बोले घणो, इण रे जीभ वेरण रो बंक।। ए दोनूं इ बोलां में अवनीत झूठो पड्यो, साच उतरियो विनीत। जब अवनीत धेष धरयो गुर ऊपरे, कहै मोने न भणायो रुड़ी रीत॥ एहवी उंधी करै विचारणा, आय गुर सूं झगड्यो अविनीत। कहै मो नै न भणायो थे कूड़-कपट करी, बलै बोल्यो घणो विपरीत। अविनीत नै बोल्यो जांण बुरी तरे, तिण सूं गुर पूछ्यो दोयां नै विचार। निरणो करै संका काढ़ी अवनीत री, पिण उण रो तो उहीज आचार॥ mon 9 १. लय-पूजजी पधारो नगरी सेवियां। इकीसवीं हाजरी : २९७
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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