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________________ १. वृक्ष १३ अगनहोत्री ब्राह्मण अगन नै, नमस्कार करै हाथ जोड़ । घृतादिक सींचे मंत्र भणे, तिण नै आराधे मान मोड़ ॥ इण दिष्टते गुर नै आराधतां, केवळी थयो शिष सुवनीत । ते पण सेवा भगत करै गुर तणी, विनो साचवे आगली रीत || राज मांहे हाथी घोड़ा विनीत छै, ते तो सुख पांमे सूड़ी रीत । नर नारी रिद्ध संपति करी, सुखी दीसै छै सुवनीत ॥ १५ बलै सुखी दीसै छै देवी देवता, जयवंत मोटा रिद्ध पाय । जावजीव लगै सुख भोगवै, लोकां में जश कीरत थाय ॥ १६ जिके पाछल भव पुन्य बांधिया, तिके भोगवे उदै आया आप । ते पिण प्रत्यक्ष दीसै छै लोक में, जांणे विनां तणो परताप ॥ १७ ज्यूं कोइ गुर नै रीझावे विनो करी, कारज कर उपजावे संतोष । तिण राग्यांन दर्शण चारित वधै, वेगो पावे अविचल मोख ॥ १८ के इ पेटभराइ कारणे, सीखे सिल्पकला विगनांन । ते तो भणे संसार रा गुर कने, ते पिण विनो करै मूंकी मांन ॥ १९ इहलोक तणा अर्थी थकां भणे राजादिक ना कुमार । गुर करड़ा वचन कहै तेहनै, देवे डंडादिक परिहार || २० ते पिण तिण गुर रा पग पूंज नै, देवे सतगुर बलै घणां संतोषे तेह नै, बलै देवे २१ तो सिद्धांत भणावे तेहनीं, विनेवंत किम कियो अवतार ॥ ते तो गुर वचने लीनो घणो, तिण सफल कियो अवतार ॥ २२ इहलोक नां गुर नो विनो कियां, कदा सीझै इहलोक काज । पण सतगुर रो विनो कियां, पांमे मुगत पुरी नो राज || २३ मूळ नै खंध थी वृष' नीपजे, पछै साखा पड़साखा वखांण । पांन फूल फळ रस नीपजे, ते उत्पति सहु मूळ नी जांण ॥ नै सनमांन । पीतीदांन ॥ दृष्टं जिन धर्म वृष रै, विनय रूपीयो मूल वखांण । समकत रुपीयो थांणो तेह नै, धीरज रूपीयो कंद पिछांण || जस रूपीयो खंध विनो वेदका सील रूपीयो गंध पिछांण । सुद्ध ध्यान रूपी छै कूंपळा, पंच महाव्रत साखा जांण ।। २६ प्रतिसाखा ते पचीस भावना, बहु गुण पंच संवर रूप फळ तेह नै, दया १२ १४ २४ २५ रूपीयो छै फूल। रूपीयों रस अमूल ॥ अठारहवीं हाजरी : २८१
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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