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________________ सोलहवीं हाजरी पांच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखंड आराधणां। ईर्ष्या भाषा में सावचेत रहिणो । आहारपाणी लेणो ते पक्की पूछा करी नै लेणो । सूजतो आहार पिण आगला रो अभिप्राय देख नै लेणो। पूजतां परठवतां सावधान पणे रहणो। मन वचन काया गुप्ति में सावचेत रहणो। तीर्थंकर नी आज्ञा अखंड आराधणी। भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धान्त देख नै श्रद्धा आचार प्रकट कीधा-विरत धर्म ने, अविरत अधर्म । आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारे अधर्म। असंजती रो जीवणो बंछे ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग देव नौ मार्ग छै। तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी। तथा संवत् १८५२ वरस आर्यां रे मर्यादा बांधी तिण में एहवो कह्यो-किण ही साध आर्यों में दोष देखे तो ततकाल धणी ने कहणो। तथा गुरां नै कहिणो। पिण और किण ही आगै कहणो नहीं। किण ही आर्त्यां जांण ने दोष सेव्यो हुवै ते पाना में लिख्यां विना विगै तरकारी खांणी नही। कोइ साधु-साधवियां रा ओगुण काढ़े तो सांभळण रा त्याग छै। इतरो कहणो–'स्वामी जी नै कहीजो' जिण रा परिणाम टोळा मांहि रहिण रा हुवै ते रहिजो। पिण टोळा बारे हुवां पछै साधु-साधवियां रा अवगुण बोलण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै त्याग छै। बलै करली-करली मरजादा बांधे त्यां में पिण ना कहिण-रा अनंता सिद्धां री साख कर नै त्याग छै। . तथा चोतीसा रे वर्स आर्यां रे मर्यादा बांधी तिण में कह्यो-टोळा रा साध आर्सा री निंद्या करै, तिण नै घणी अजोग जाणणी। तिण नै एक मास पांचू विगै रा त्याग छ। जितरी वार करै जितरा मास पांचू विगै रा त्याग छै। जिण आ· साथे मेल्या तिण आ· भेळी रहे अथवा आर्यां मांहोमां शेषे काळ भेळी रहे अथवा चोमासे भेळी रहे त्यां रा दोष हुवै तो साधां सू भेळा हुवै जद कहि देणो न कहै तो उतरो प्रायछित उण नै छै। टोळां सूं छूट हुवा री बात माने त्यां नै मूरख कहीजे। त्यां नै चोर कहीजे। तथा पचासा रा लिखत में कह्यो-ग्रहस्थ साधु-साधवियां रो सभाव प्रकृति अथवा दोष कहै बतावै जिण नै यूं कहणो-मो नै क्यांने कहो, के तो धणी नै कहो, के स्वामी जी नै कहो। ज्यूं यां नै प्राछित देने सुध करे, नहीं केसो तो थे पिण दोषीला गुरां रा सेवणहार छै। जो स्वामी जी नै न कहिसो तो थां में पिण बांक छै। थे म्हांने कह्या कांइ हुवै। यूं कहि नै आप न्यारो हुवै, पिण आप बेदा में क्यांने पड़े। पेला रा दोष धार ने भेळा करै ते तो एकंत मिरषावादी अन्याइ.छै। तथा पचासा रा गुणसठा रा लिखत में कह्यो-कर्म धको दीधां टोळा सूं टलै तो टोळा रा साध-साधव्यां रा हुंता अणहुंता अवर्णवाद बोलण रा त्याग छ। टोळा नै २६६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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